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दोस्तों ज्ञान शून्य होकर ही अज्ञान शून्य हुआ जा सकता है, क्योंकि अज्ञान से पीछा छुड़ाना इतना आसान नहीं है I अज्ञान से पीछा तभी छुड़ाया जा सकता है, जब आप ज्ञान से पीछा छुड़ा लो I जितने भी अप्राकृतिक ज्ञान हैं, जिसकी आपको बिल्कुल जरूरत नहीं है, उन ज्ञान से मुक्त हो जाना ही ज्ञान शून्य होना होता है I


मित्रों, अप्राकृतिक ज्ञान वो ज्ञान होते हैं, जो इंसानों ने खुद अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करके बनाए हैं, विवेक का इस्तेमाल करके बनाएं हैं I हमारे पास मन का विवेक होता है I आतम विवेक, जो आत्मा से ज्ञान बरसता है मन पर, उससे जो विवेक प्रकट होता है, वो आतम विवेक होता है, वो बिरलों के पास होता है, लेकिन जो विवेक मन से प्रकट होता है, वो मन का विवेक है, वो किसी काम का नहीं है, मन का विवेक केवल जीविकोपार्जन के लिए ही सहयोगी होता है, और हम जितने भी ज्ञान अर्जित करते हैं, जितना भी नॉलेज हम लेते हैं, जो भी अर्जन करना पड़ता है, हमको अचीव करना पड़ता है, मेहनत करके प्राप्त करना पड़ता है, वो केवल जीविकोपार्जन में ही काम आते हैं I


बाकी आत्मज्ञान जो परमात्मा का ज्ञान है, वह हमारी धरोहर है, उसको प्राप्त करने की जरूरत नहीं है, उसको कभी भी किसी को भी प्राप्त करने की जरूरत नहीं पड़ी है I जिसने भी गुरु शरण में जाकर या विभिन्न व्यक्तियों के अनुभवों को पढ़कर या पुस्तकें पढ़ कर ज्ञान अर्जित किया है, वो ज्ञान संसारी ज्ञान ही है, तत्वों का ज्ञान ही है, वो निहतत्व ज्ञान नहीं हो सकता, आत्म ज्ञान नहीं हो सकता, क्योंकि आतम ज्ञान स्व स्फूर्थ ज्ञान होता है, वह ज्ञान ऐसा ज्ञान होता है, जो शब्दों में नहीं कहा जा सकता, केवल उसकी तरफ इशारा किया जा सकता है, और वही ज्ञान आपके मन के समस्त पाखंडों और समस्त भरमों का क्षय करते हैं, विनाश करते हैं I वह ज्ञान अमर ज्ञान होता है, परम ज्ञान होता है, उस ज्ञान का मुकाबला कोई ज्ञान नहीं कर सकते, लेकिन उस ज्ञान की सबसे पहली खासियत ये होती है, कि उस ज्ञान को अर्जित करना ही नहीं पड़ता, वह ऑलरेडी है, ऑलरेडी है ही, वो बरस रहा है I


उसको प्राप्त करने का सबसे सुगम तरीका इस मन को उसकी प्राप्ति मिले, इस मन को उसकी सुगमता मिले, एक्सेस मिले, जिसको कह सकते हैं कि एक्सेस मिले, उसके लिए आपको आत्मा के द्वारा बरसाए जा रहा अखंड रूप से जो अमृत है, उस अमृत का पान करना पड़ेगा, निरंतर पान करना पड़ेगा, उस अमृत का पान योग स्वरूप जो कई लोग तालुए पर करते हैं, वह अमृत पान नहीं है, वह योग साधना से प्राप्त, परिश्रम से प्राप्त, एक रस है, जो क्षणिक होता है,.......... लेकिन जो आत्मा का जो अमृत है, अमृत का मतलब, अमर रस जो है, वह कभी खत्म नहीं होता, उसकी धरण कभी खत्म नहीं होती है I


आप के योग से, सुमिरन से, शब्द सुमिरन से, जितने भी आप रस प्राप्त करोगे, सब क्षणिक रस हैं, कुछ समय के लिए मिलेंगे, वापस बंद हो जाएंगे, लेकिन जो एक रस बरस रहा रस है, जो अमृत है, उसको हम जिह्वा से तालू से नहीं चखते, उसको रोम रोम से चखा जाता है, रोम रोम से पिया जाता है, जब वो रस आप पीते हो, रोम-रोम से पीते हो, जब उसके सम्मुख हो जाते हो, उस आत्मा की कृपा के सम्मुख होते हो, तब आपको वो रस मिलना शुरू होता है I वो रस कोई भौतिक रस नहीं है, वो अभौतिक रस है, वो तात्विक रस नहीं है, वह अतात्विक, निहतत्व वाला रस है, और वो रस रोम रोम से पीया जाता है I


आपके रोम-रोम के भी अगर एक रोम को भी लिया जाए, उस रोम के भी लाख हिस्से कर दिए जाएं, तो वो लाखवाँ हिस्सा भी तृप्त करती है, वो रस इतना अमूल्य, इतना तृप्ति दायक रस है, उस रस को पीते ही सारा अप्राकृतिक ज्ञान शून्य हो जाता है, सारा अज्ञान शून्य हो जाता है, अज्ञान को शून्य करने के पीछे मत भागिए, केवल ज्ञान शून्य कर दीजिए I


दोस्तों इस संसार में हम जितना भी ज्ञान लेते हैं, वो सारे ज्ञान से हमारे मन के अंदर एक ऐसा प्रोसेसर लगा हुआ है, कि उसी ज्ञान को ताना-बाना बुन कर एक derive नॉलेज, उसी ज्ञान से संबंधित सारी नॉलेज हमारे माइंड में इकट्ठा करता है, जब भी हम को कोई भी रिजल्ट की जरूरत होती है, किसी भी ज्ञान की आवश्यकता पड़ती है, तो वो जो पुराना ज्ञान होता है, उसी को प्रोसेस करके हमारा मन हमको इंस्ट्रक्शन देता है I


तो मित्रों, अब तक आपने जो भी आध्यात्मिक ज्ञान पढ़ा है, उसी ज्ञान के अनुरूप आपका माइंड derived होता है, और उसी ज्ञान के अनुरूप आपको आंसर मिला करते हैं, और उसी ज्ञान के अनुरूप आपका विवेक बनता है, कि सामने से आपको क्या मिल रहा है, उसको आप सही माने या गलत माने, और पुराने ज्ञान के अनुरूप ही आपका मन का विवेक प्रकट होता है I

मन उसी पुराने ज्ञान के अनुरूप, उन्हीं वाणियों के ज्ञान के अनुरूप, उन्हीं ग्रंथों के और जो आपने गुरुओं से जो ज्ञान लिया है, वो स्व स्फूर्थ ज्ञान नहीं है जो आत्मा की कृपा से बरसता है, वो ज्ञान नहीं, जो आपने गुरुओं से लिया, ग्रंथों से लिया, वाणी में से लिया, उसी ज्ञान के अनुरूप आपका माइंड प्रोसेस करके एक डिराइव्ड नॉलेज आपके सामने रखता है, निर्णय लेने की क्षमता आपको देता है, तो ये मन का विवेक है, और यह मन का विवेक किसी काम का नहीं है आध्यात्मिक जगत में I


मन का विवेक आपको इसलिए दिया गया है, प्रकृति प्रदत्त इसलिए दिया गया है, ताकि आप सरवाइव कर सको, अपना भरण-पोषण कर सको, आपका स्वयं का और आप पर जो निर्भर लोग हैं उन का भरण पोषण कर सको I इस मन का और इस मन के विवेक का अध्यात्म जगत से दूर-दूर तक कोसों दूर तक कोई लेना देना नहीं है, लेकिन हम अब तक इन्हीं वाणियों के अनुरूप, इन्हीं को पढ़ पढ़ कर हमारे अंदर एक ऐसा डेटा फिट कर लिया है हमने हमारे अंदर, उसी के अनुरूप हम जो विवेक धारण किए हुए हैं, इस वजह से हम उस सत्य से विमुख हो गए हैं, उस आत्मा से विमुख हो गए हैं, और फिर जब आत्मा से विमुख हो गए, तो कैसे आपके रोम-रोम को, आप के प्रत्येक छिद्र के रोम के भी अनंत सूक्ष्मता से कैसे आपको अमृत रस मिलेगा ??? आप तो आत्मा से विमुख हैं, सम्मुख आओगे तो ही तो वो रस मिलेगा आपको, अमृत रस मिलेगा, और जब उसका पान होगा, यह है औषधि, जब उसका पान होगा, तभी आप ज्ञान शून्य होगे, कौन सा ज्ञान शून्य होगे???? , जो यह अप्राकृतिक ज्ञान है I


फिर आपको एक रस उस आत्मा का सहयोग मिलना शुरू हो जाता है, आतम विवेक प्रकट होता है, फिर प्रोसेसिंग बदल जाती है आपकी, फिर आपके मन की प्रोसेसिंग उस अल्टीमेट से जुड़ जाती है, उस infinite से जुड़ जाती है, और फिर जब भी आपको अध्यात्म जगत से संबंधित किसी भी जानकारी की आवश्यकता होती है, तो infinite आपका सोर्स बनता है, और फिर आपको उस infinite से विवेक मिलता है, वो सर्वत्र है, हर जगह है, इतने छोटे से हिस्से में भी हर जगह पर है, इसका अनंतवां हिस्सा कर दोगे, वहां भी मौजूद है, ये अखंड रूप से व्याप्त है, खंडित रूप से व्याप्त नहीं है I जैसे कि शून्य तत्वों में खंडित रूप से व्याप्त है, जहां पर अणु हैं, वहां शून्य नहीं है, लेकिन परमात्मा ऐसे नहीं है, परमात्मा अणुओं में भी है, और जहां शून्य है, वहां पर भी है I


तो इस तरह से ज्ञान शून्य हुआ जाता है, अन्यथा आप अज्ञान के ऐसे चंगुल में फंसते चले जाओगे, आपको पता भी नहीं चलेगा, जो ज्ञान है वही तो आपका अज्ञान बना हुआ है, उसी ने आपको अनंत होने से रोक दिया है I आपकी शरीर की हद से बाहर जाने से रोक दिया है आपको, उसी ने आप को आप की हद में रखा हुआ है, बेहद से पार नहीं होने दिया उसने आपको I


जो हद और बेहद से पार हो जाता है, जो अनंत हो जाता है, वह अनंत से जुड़कर ही अनंत हुआ जा सकता है, तभी आप अपने आप से बाहर जा पाओगे, अपने आप से मतलब समस्त मनों से बाहर जा पाओगे, और वो तभी संभव है, जब उसका रसपान मिलेगा आपको, वो भी निरंतर, कांस्टेंट रसपान मिलेगा, तभी आपको जन्मों जन्मों की प्यास बुझेगी, तभी जाकर आपके जन्मों जन्मों की पीड़ा खत्म होगी, तभी जाकर आपको परम संतुष्टि, और सारे भरमों का निवारण होगा, कोई दूसरा नहीं करेगा वो निवारण I


दूसरों के मत जाइए, मत चरण पकड़िए, अरे वह सर्वसत्ता, वो सबका मालिक हमारे समीप के समीप है, जितना हम समीप नहीं है, उतना वो मालिक हमारे समीप है, हमने उस मालिक को छोड़ दिया, उससे विमुख होकर इन लोगों के पास चले गए I


कल मुझसे एक मित्र पूछ रहा था, कि एक संत ने कहा है कि…………………


“”हरि रूठे ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर””


मैंने कहा ये दोनों ही गलत हैं, आपका जो हरि है, वो भी एक जीव है, और गुरु भी जीव है I परमात्मा कभी किसी से नहीं रूठता, लेकिन परमात्मा रूठा हुआ है, वो इस तरह से मानिए, कि आप अगर उससे विमुख हो, तो परमात्मा आपसे रूठा हुआ है I आप किसी हरि की शरण में, किसी गुरु की शरण में जाते हो, तो परमात्मा रुठा हुआ है, रुठा मतलब आप उससे विमुख हो, कृपा नहीं मिल पा रही I जब आप इनसे दूर होंगे, तब जाकर आप उसके सम्मुख होंगे I


जो गुरु है, वह अध्यात्म जगत में काम नहीं आता, गुरु केवल और केवल इस संसार जगत में काम आता है, अगर आपको कोई व्यवसाय सीखना है, तो गुरु करना पड़ता है, सांसारिक किताबें पढ़ने के लिए गुरु करना होता है, कुछ सीखने के लिए गुरु करना होता है, जैसे गिटार सीखना है, एक्टिंग सीखनी है, डांस सीखना है, उर्दू सीखनी है, हिंदी सीखनी है, इंग्लिश सीखनी है, ये सांसारिक कार्यों के लिए गुरु की आवश्यकता होती है I


जब बात आध्यात्मिक की हो गई, आध्यात्म यानि आत्मा, जब बात आत्मा की हो गई, तो गुरु आत्मा ही होगा, अन्य कोई हो ही नहीं सकता, और जिसने आत्मा को गुरु बनाया, उसी ने उस अमृतरस का पान किया, बाकी सब भूखे नंगे प्यासे चले गए, इस संसार से विदा हो गए, विरह में डूब कर मर गए, और मिला क्या ??? ब्रह्म पुरुष,.......वो दुबारा आपमें विरह प्रकट करेंगे, वो तो एक राजनेता की तरह हैं मात्र,... जो उनको मजा आता है आपको परेशानियाँ देने में,... थोड़ा सुख देंगे, जब आप सुख से तृप्त होने लगेंगे, तो अपने आप उनकी याद खत्म होने लगेगी, तो फिर आपको दुख देंगे, फिर दुखों में डाल दिया जाएगा, फिर आप विरह में तड़पोगे, फिर सुख दे दिया जाएगा, फिर दुख दे दिया जाएगा, फिर सुख दे दिया जाएगा,...... इस तरह से आपको निरंतर, अनंतों जन्मों से तड़पाया जा रहा है, और तड़पाया जाता रहेगा I


गुरु लोग आपको गुरु महिमा पढ़ा पढ़ा कर, पढ़ा पढ़ा कर आपके अंदर ऐसा प्रोसेसर फिट कर देते हैं, कि फिर आपका विवेक गुरु संबंधित विवेक हो जाता है, फिर आप जो भी सोचोगे गुरु से संबंधित सोचोगे, जो भी करोगे गुरु से संबंधित करोगे, और फायदा रत्ती भर नहीं मिलेगा, और इस प्रोसेस में भी अगर कोई किसी से फायदा मिलेगा, तो आत्मा ही फायदा दे रही होगी आपको, लेकिन आप क्रेडिट किसी जीव को ही देकर चले आते हो, अरे जो कर रहा है आपके लिए क्रेडिट उसी को ही दीजिए, संपूर्ण भाव उसी को समर्पित करिए, तभी जाकर आप भावातीत अवस्था में आ पाओगे, क्योंकि भाव शरीर का ही गुण है, और भाव से परे जाना ही सत्य में जाना है, वो भावातीत रस ही अमर रस है, मनोतीत रस ही अमर रस है, उस अवस्था में जाने के लिए आपके रोम रोम को सहज करना होगा, रोम-रोम को खोलना होगा, ताकि आप वो रस प्राप्त कर सको, वो रस गिर ही रहा है, निरंतर गिर रहा है I


मित्रों ये कोई इतना बड़ा जटिल काम नहीं है, जटिल हमने बनाया हुआ है, हमने क्यों बनाया हुआ है जटिल????, क्योंकि हमको कुछ अर्जन करना है, क्योंकि हम इस संसार में देखते हैं, कि सब कुछ अर्जित करके पाया जा रहा है, तो यह तत्व की व्यवस्था में सब कुछ अर्जित करके ही मिल रहा है, लेकिन मित्रों वो तो ऑलरेडी मिला हुआ ही है, बस उसको ऐक्सेस करना है, उसको लेना है मात्र, उसके लिए कोई परिश्रम की आवश्यकता नहीं है, और ये बिल्कुल ही सोचने वाली बात है, कि जिसके लिए परिश्रम किया जा रहा है, तो वो फिर परमानेंट कैसे हो सकता है, जिसको अचीव करोगे, वह परमानेंट कैसे हो सकता है, कोई हरे कृष्णा कृष्णा, कृष्णा हरे हरे का जाप करता है, हरे राम राम राम हरे हरे का जाप करता है, या राधेssssss………. इस तरह से जाप कर रहे हैं, इन जाप से आपको परमात्मा मिलेगा, इस जाप से तो आपके अंदर धीरे धीरे धीरे धीरे जब इनका अभ्यास बढ़ेगा, तो एक अभ्यास का रस पैदा होता है हमारे हृदय में, वो आपको मिलने लगता है तो आप समझते हो कि हम आनंदित हो रहे हैं, परमात्मा की कृपा हो रही है, लेकिन गलत है, वो परमात्मा की कृपा नहीं है, अभी आपके पास हृदय जैसा एक इंस्ट्रूमेंट है, जब ये इंस्ट्रुमेंट नहीं रहेगा, तब क्या करोगे आप ????? जीव्हा है, जिससे आप जप कर पा रहे हो, जब जीव्हा नहीं होगी, फिर क्या करोगे आप ???


वो अमर नाम निरंतर चल रहा है, वो अमर नाम इंद्रियातीत है, समस्त इंद्रियों से परे है, किसी भी इंद्री से उसको जपने की आवश्यकता नहीं है I कुछ लोग सिर के ऊपर ध्यान लगवाते हैं, और कहते हैं कि ये सार शब्द है, नहीं मित्रों, यहां भी इंद्री का प्रयोग हो रहा है, और जहां इंद्री का प्रयोग है, क्योंकि ध्यान में इंद्री लग ही रही है, अब आपकी बाह्य दृष्टि ना लगे, आंतरिक दृष्टि लगी रही है, और जो सुरति निरति से अगर आप परे हो जाओ, सुरति अतीत, निरति अतीत हो जाओ, वही मुक्ति है, क्योंकि वही चीज है जो निरंतर चलेगी जहां पर कोई एफ़र्ट्स ना हो, एफर्टलेस हो, प्रयास रहित हो, पूर्ण प्रयास रहित हो, वही आपको रोम-रोम में अमृत पान करवा सकती है, वही आपको आत्मा की सुध में लाकर निश्चल कर सकती है, वही आपको ज्ञान शून्य करके अज्ञान शून्य कर सकती है I


जो आध्यात्मिक जगत का कूड़ा आपने भरा है अब तक अपने मस्तिष्क में, और उस कूड़े से जो आपके अंदर विवेक प्रकट हो रखा है, उस विवेक का नाश करती है, और अमर विवेक, आतम विवेक प्रकट करती है आत्मा, और जब तक आप में अमर विवेक नहीं आएगा, तब तक कुछ नहीं होगा, वो आत्मा अक़र्ता है इसीलिए निरंतर है I जो कर्ता होता है, वो कभी निरंतर नहीं हो सकता I आत्मा अक़र्ता है, पूर्ण अक़र्ता है इसलिए वो निरंतर है, और अभोक्ता है, उसको किसी भी तरह की भोग की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि जिसको भी भोग की आवश्यकता होती है, उसमें चेंजमेंटस होते हैं, परिवर्तन होता है, और जहां परिवर्तन है, वहाँ काल है, और जहां काल है, वहां मुक्ति नहीं है I


इसलिए मित्रों, ज्ञान शून्य होकर, स्व स्फूर्थ ज्ञान, जो आत्मा कृपा से मिले, उस infinite से जुड़कर जो मिले आपको, आपके मन को मिले, वही ज्ञान अमर ज्ञान है, उसको ज्ञान भी नहीं कहा जा सकता, वो केवल और केवल समाधान है, वो आपकी पीड़ा और तृष्णा को मिटा कर आपको प्राप्त करता है, और जीते जी मुक्त करता है, और मरणोपरांत सीधा मोक्ष मिलता है, आप स्वयं आत्मा ही हो जाते हो I सारे शरीर जल जाने पर बचा क्या ??? आत्मा ही बची I अपने आप से पार हो जाओ, ये मन के समस्त तत्वों से पार हो जाना आत्मा है I धन्यवाद I


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जितना विश्वास आपका है, वैसा ही आपको फल मिलता चला जाएगा I विश्वास की शक्ति कभी भी निरर्थक नहीं होती I विश्वास कभी भी निरर्थक नहीं होता, लेकिन विश्वास लोग करना जानते ही नहीं, उस अमर कल्याणकारी पर I सबसे पहली चीज, जो अगम अथाह अपार है, जो अविनाशी है, वो कभी भी हितकारी नहीं हो सकता, कभी हितकारी नहीं होता I

तो पहला जो उसका गुण है अमर कल्याणकारी I वो सदा कल्याण ही करता है, उसका गुण ही है ये, और जहां जिस व्यवस्था में, जिस ज्ञान में, जिस पंथ में आप हो, आपको डराने की बात हो, आपके अकल्याण की बात हो, कि आपके साथ ऐसा हो जाएगा, ऐसा दुर्व्यवहार हो जाएगा अगर आपने हमारी बात नहीं मानी तो आपके साथ ऐसा ऐसा हो जाएगा, तो समझिए आप गलत रास्ते में घुस रहे हैं I दंड विधान माया के क्षेत्र में हैं आप I

तो जहां दंड है, वहां दंड ही मिलता रहेगा I निश्चित ही पुरस्कार भी है, लेकिन वह पुरस्कार दंड ही बनेगा, क्योंकि यह माया का जंजाल ऐसा ही है, ये अनंत सृष्टियों का जंजाल ऐसा ही है, पहले पुरस्कार दिया जाता है, भोग दिया जाता है, फिर उनका दंड दिया जाता है, कर्म बंधन में डाला जाता है, कर्म भी वही करवाते हैं I आप सोचते हो कि आप कर्म करने वाले हो, आप पुरुषार्थ करने वाले हो, पुरुषार्थ तो बहुत बड़ा अहंकार है, क़र्म बहुत बड़ा अहंकार है, अगर आपने अपने ऊपर आरोपित कर लिया, कि मैं कर्म करने वाला, मैं पुरुषार्थ करने वाला, तब काम नहीं बनेगा I

जब हम कहते हैं, परमात्मा की साधना करना है, तब आप पुरुषार्थ से पार जा रहे होते हो, क्योंकि पुरुषार्थ स्वयं अपने आप में मैं है, बहुत बड़ा मैं है, तो विश्वास का पूर्ण लाभ लेने के लिए हमें अगम अपार अथाह से ही जुड़ना होता है, अनंत से ही जुड़ना होता है, क्योंकि उसकी कोई सीमा नहीं, तो हम जितना चाहे उतना ही विश्वास के लेवल को बढ़ा सकते हैं, और जितना विश्वास वैसा फल, जैसा विश्वास वैसा फलI अगर आपका विश्वास बहुत छोटा है, तो फल भी बहुत छोटा होगा, और विश्वास अनंत से है, तो फल भी अनंत ही होगा I

विश्वास अमर से है तो फल भी अमर ही होगा, लेकिन अमर के नाम पर, अविनाशी के नाम पर, अथाह अगम अपार के नाम पर,... आप किसी ऐसी व्यवस्था पर विश्वास जमाए बैठे हो, तो वैसा ही आपको फल मिलेगा, और इसीलिए देखिए सदियों से लेकर, अनंत समय से लेकर उठाकर देख लीजिए, जिन जिन लोगों ने जैसा जैसा विश्वास किया, वैसा वैसा उनको फल मिला I

इसलिए हमारे पास अभी तक अपार फल वाले व्यक्ति का कोई भी नामोनिशान नहीं है, जिनको अथाह फल मिला, अपार फल मिला हो, वह स्वयं अपार अथाह तभी मिलता है, जब उस पर अपार और अथाह विश्वास किया जाता है, और अपार और अथाह विश्वास तभी किया जाता है, जब हम उससे जुड़ते हैं, क्योंकि अभी तो आप लोगों को विश्वास करना भी नहीं आता I

विश्वास क्या है ??? जब हम एक रस अखंड से जुड़ते हैं, जो कभी परिवर्तन में नहीं आता, तभी तो जाकर हम अपरिवर्तनीय विश्वासी हो पाएंगे, तभी तो हमारा विश्वास नहीं डिगेगा, क्योंकि वह परमात्मा जो स्वयं नहीं डिगता, उस अडिग से जब हम जुड़ते हैं, उस अनंत से, उस थिर से जब हम जुड़ते हैं, तो हमारा विश्वास भी थिर हो जाता है, और वो स्वयं थिर है, तो हमारा विश्वास भी अनंत हो जाता है I

तो अनंत थिर विश्वास बनाने के लिए उस अनंत और थिर से जुड़ना पड़ता है, और जब हम अनंत और थिर से जुड़ते हैं, तो हमारा फल भी अनंत और थिर ही होता है, लेकिन जब कोई व्यक्ति शुरू में जुड़ता है, या केवल लालचवश आता है, तो प्रकृति का नियम है, जो लालच से आता है, उसको लालच ही मिलता है, उसको गलत ही मिलता है, चाहे वो सही जगह भी जुड़ जाता है, तो भी वह गलत ही प्राप्त करता है I

तो सबसे पहले लालच से कहीं भी मत जुड़िए और आप जब लालच से कहीं नहीं जुड़ोगे, निर्मोह होकर जुड़ोगे, बिना लालच के जुड़ोगे, तो गलत जगह भी जुड़ जाओगे, तो वहां से हट जाओगे I इसलिए मैं कहता हूं, जहां भी आप जुड़े हुए हो, वहां पर परमात्मा के 1 गुण को अंगीकार करके जुड़िए, विश्वास से जुड़िए, ठहराव से जुड़िए, फिर देखना उनके सारे रहस्य आपके सामने आ जाएंगे, उनकी सारी पोथियां आपके सामने खुल जाएंगी, और एक समय बाद दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा, और आप वो छोड़ ड़ोगे I

कहीं पर भी ठहराव वाला, थिर वाला विश्वासी व्यक्ति गलत जगह नहीं ठहर सकता, रुक नहीं सकता, क्योंकि उस पर परमात्मा की कृपा होने लगती है, तो आप गलत जगह भी जुड़े हैं, तो परमात्मा के एक गुण को अंगीकार कर लीजिए, धीरे-धीरे उस पंथ के, उस जगह के आपको रहस्य पता लगने लगेंगे, उनकी गलतियां पता चलने लगेंगीं, और आप तुरंत ही छोड़ दोगे, तो छोड़ने की शक्ति और ये विश्वास परमात्मा से ही प्रकट होता है I

तो जैसा विश्वास होगा, गलत जगह जुड़ोगे, तो उनकी व्यवस्थाएं भी पार वाली व्यवस्थाएं हैं, उनकी भी थाह है, अपार तो है नहीं, अथाह तो है नहीं,... तो तुम्हारा विश्वास भी बहुत सीमित बन पाएगा, और अखंड विश्वास नहीं बन पाएगा, वो टूटता रहेगा, कभी फिर बन जाएगा, फिर टूट जाएगा, थोड़ा सा मोटिवेशनल सुन लिया अपने गुरुओं से, तो जुड़ जाएगा फिर टूट जाएगा, फिर जुड़ जाएगा फिर टूट जाएगा,........ और परमात्मा ऐसा विस्मयकारी है, ऐसा समर्थ है कि जब आप उससे पूरे दिन में एक पल भी जुड़ते हो, एक पल भी पूर्ण निष्ठा से, पूर्ण विश्वास से गुण को पहचान कर आभास कीजिए केवल एक पल, अगर आप से नहीं हो पाता,.. जो जितना करेगा उसको उतना लाभ मिलेगा, क्योंकि जैसे-जैसे परमात्मा से जुड़ोगे, जैसे जैसे उस अनंत से जुड़ोगे, तो आपका विश्वास भी अनंत होता चला जाएगा,.. और जैसा विश्वास वैसा लाभ I जब विश्वास अनंत होगा तो लाभ भी अनंत होगा I

जैसे मैंने कहा कि जब परमात्मा से हम जुड़ते हैं तो परमात्मा आपको आपको दूसरे यूनिवर्स में शिफ्ट कर देता है, आपके लिए क्या क्या कर देता है आपको पता भी नहीं चलता, आपको कहां से उठा कर कहां ला दिया जाता है, यह आपको पता ही नहीं चलता I उसके काम हमेशा गुप्त होते हैं, आपकी मेमोरी में भी शिफ़्टिंग हो जाती है, जब वह आपको कहीं शिफ्ट कर रहा होता है, तो उस व्यवस्था में सभी जीवों के मेमोरी में भी आपको डाल दिया जाता है, इसलिए उसको समर्थ कहा जाता है, वह कर्ता नहीं है, वह तो अक़र्ता है, जैसे ही आप जुड़ते हो, आप पर ये चीज ऑटोमेटेकली होने लगती है, चाहे कोई भी क्यों ना हो, ये उसके गुण का ही चमत्कार है, जैसे बर्फ़ ने ठंडा नहीं किया, उसका गुण है ठंडा करना, उसने कोई स्पेशल आपको ठंडा नहीं किया, जो भी बर्फ पे हाथ रखेगा, बर्फ के समीप आएगा, वह ठंडा हो जाएगा I

सूर्य के समीप जो भी जाएगा वह गर्म हो जाएगा, तो जैसे हर वस्तुओं के गुण हैं, ऐसे ही उसके अमृत गुण हैं, कि आपका जीवन बदलने लगता है, आपका जीवन अमृत की ओर बढ़ने लगता है, आपका जीवन पूर्ण सहजता की ओर बढ़ने लगता है, तो केवल ब्रह्मांड की शिफ़्टिंग नहीं होती, बहुत सारे काम होने लगते हैं, और एक पल के अंनतवे हिस्से में आपको कहां से कहां पहुंचा दिया जाता है, आपको पता भी नहीं चलता, क्योंकि आपकी मेमोरी में भी शिफ़्टिंग होती है, बस आप साधना करते रहें, आपको लगता है आप तो वहीं के वहीं हो, नहीं, ऐसा नहीं है I

जब आप पर कृपा बढ़ने लगती है, फिर आपको पता भी चलने लगता है, कि आपके साथ क्या-क्या हो रहा है, आपके जितने भी ऐसे कार्य हैं, जो आपको करने होते हैं आप की जगह, अपने आप हो जाते हैं, वो बाद में पता लगने लगता है आपको, कि यह तो मुझे करना था, वह हो चुका है, फिर आप ढूंढते हो अपनी मेमोरी में, ये कैसे हुआ, मैंने तो किया नहीं, लेकिन हो जाता है I

अब आपके पीछे कई सारे काम हो रहे हैं आपके I अनंत जन्मों के लेखों जोखों को सेट किया जा रहा होता है, और ये अपने आप होता है प्रकृतियों के द्वारा, परमात्मा नहीं करता, परमात्मा से आप को जुड़ना होता है बस, खेल अपने आप चल पड़ता है उस परम चेतना के लिए I

तो जैसा विश्वास वैसा फल, और जीव की क्या हिम्मत, कि वो गहरा अनंत विश्वास कर सके, नहीं, हिम्मत नहीं, आपका तो काम यह है, कि जैसे किसी को ठंड लगती है ,तो रजाई ओढ़ लेता है, ऐसे ही हम सब ठंडे मर रहे हैं, विपदाओं में, परेशानियों में, दुख में, कलेश में, वो तभी दूर होता है, जब हम उस परमात्मा रूपी रजाई कोओढ़ लेते हैं, उसके गुणों के सम्मुख हो जाते हैं, फिर हमारी ठंड भागने लगती है, दुख रूपी ठंड भागने लगती है, फिर हमारे जीवन से सारे दुख निकलना शुरू हो जाते हैं, एक-एक दुख को, सूक्ष्म से सूक्ष्म दुख को निकाला जाता है I

ये संसार, ये शून्य से शून्य की यात्रा, अनंत दुखों का पहाड़ है, अनंत चिंताओं का पहाड़ है, निश्चित ही इसके विपरीत भी मिलता है, दुख का सुख भी मिलता है, चिंता की जगह हर्ष भी मिलता है, लेकिन वो तो हम भोग लेते हैं, लेकिन दूसरा पहलू भोगने में सब घबरा जाते हैं, इसलिए पहले पहलू को भी निकाल दीजिए I हमें सुख भी नहीं चाहिए, आनंद भी नहीं चाहिए, द्वैत अद्वैत से ही बाहर होना है, क्योंकि द्वैत अद्वैत लेप व्यवस्था के गुण हैं, लेप के है, निर्लेप के नहीं हैं, ये आकाश व्यवस्था के गुण हैं, आकाश और आकाश से संबंधित जितनी भी चीजें उदय में आती हैं, वह सब लेपित हैं, निर्लेप नहीं है, और जो अगर कोई यह कहता है, कि आकाश बनाया गया है, तो हां जो शब्द है वह तो बनाए गए हैं, और जो अशब्द है, जो परम शून्य है, वह बनाया नहीं गया, वो स्वयं भू है I

तो स्वयंभू से लेकर ये जितनी भी व्यवस्थाऐँ चलती आ रही है, वह सब लेपित व्यवस्थाऐँ हैं, स्वयंभू स्वयं लेपित है, निर्लेप नहीं है, क्योंकि निर्लेप से लेप कैसे उत्पन्न हो सकता है ??? नहीं हो सकता I

तो हम सब लेपित हैं, और निर्लेप सदा सबसे अलग रहता है, ऐसा नहीं है कि उत्पन्न करके अलग हो गया, या उससे निकलकर अलग हो गया, नहीं, ऐसा कुछ नहीं है, उससे कभी कुछ नहीं निकलता, वह सदा परम तटस्थ है, सबसे अलग है, सब में है, जो सबसे अलग है, वही सब में हो सकता है, जो सबसे अलग है, वही आकाशातीत हो सकता है, जो सबसे अलग है वही सर्वव्यापी हो सकता है, यही उसका अमर गुण है I

जब आपके अंदर उस अनंत विश्वास की विधा घटने लगती है, तब आपके जीवन में चमत्कार होने लगते हैं I आपका सच्चा मित्र, परम मित्र केवल, अथाह अपार अगम ही है, और कोई नहीं है, अथाह से ही जुड़ना है आपको, अनंत से ही जुड़ना है, सर्व व्यापी से ही जुड़ना है, थिर से ही जुड़ना है, उस अमर शांत से ही जुड़ड़ना है आपको, और कोई भी जगह आप जाओगे, वहां आप उलझ जाओगे, सुलझाव यहीं है, हर परेशानियों से सुलझाव आपको यहीं मिलेगा I धन्यवाद I


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प्रत्येक जीव के आकाशीय रिकॉर्ड समान होते हैं, लेकिन अलग-अलग समय सीमा में I

आकाशीय रिकॉर्ड्स क्या होते हैं, और वह सब के अलग-अलग प्रतीत क्यों होते हैं, और वह सब के एक समान हैं, वह कैसे हैं, आज हम इन विषयों पर बात करेंगे I


हर व्यक्ति का एक आकाशीय रिकॉर्ड होता है I वह आकाशीय रिकॉर्ड ही तय करता है, कि आपके जीवन में किस तरह की घटना, किस तरह के विचार, किस तरह के भाव, और किस तरह के आवेग उत्पन्न होंगे I वह आकाशीय रिकॉर्ड से तय होते हैं I


यह आकाशीय रिकॉर्ड कहां होते हैं, शब्दों से ही पता चल रहा है आकाश, यह रिकॉर्ड आकाश में होते हैं, और आकाश हर जगह मौजूद है खंडित रूप से I तो जहां जहां आकाश है, वहां वहां हर जीव के रिकार्ड्स हैं I अब वो रिकॉर्ड किस तरह से होते हैं, वह वाइब्रेशंस के तरंगों के रूप में होते हैं, और तरंगे किससे बनती है, तरंगे तत्वों से ही बनी हुई होती हैं, या कहें कि तत्वों का ही विस्तार तरंगे हैं I


जब सूक्ष्मतम तत्वों की एक श्रेणी तैयार होती है, उसी को हम तरंगे कहते हैं, उसी को हम वाइब्रेशन कहते हैं I तो सूक्ष्म तत्वों के रूप में, जिनको हमारी आंखें देख नहीं सकती, बहुत सूक्ष्म से सूक्ष्म यंत्र भी जिन्हें पकड़ नहीं सकते, उस रूप में यह आकाशीय रिकॉर्ड्स आकाश के अंदर रहते हैं, और यही आकाशीय रिकॉर्डस हर जीव की घटना, उनके आवेग, भाव विचार और जितनी भी तरह की मूवमेंट्स होती हैं, वह सब तय करते हैं,... लेकिन जब हम किसी एक विशेष समय में देखते हैं, तो हर जीव के जीवन में अलग-अलग घटनाएं घटती हैं, अलग-अलग विचार, भाव, प्रेरणा घटती हैं, सबकी एक समान नहीं होती, लेकिन जब हम यह कहते हैं कि सबके आकाशीय रिकॉर्डस समान हैं, तो वह समान कैसे हैं, और जब हम वर्तमान समय में देखते हैं, तो सबके आकाशीय रिकॉर्डस अलग अलग होते हैं I


आज हर व्यक्ति के जीवन में अलग-अलग घटनाएं घट रही हैं, उनमें विचार भी अलग आ रहे हैं, भाव भी अलग उत्पन्न होते हैं, सब की चिंताएं भी अलग है, सबके सुख भी अलग हैं, सबके दुख भी अलग हैं, तो इस तरह से क्या प्रकृति अन्याय कर रही है I जब आकाशीय रिकॉर्डस मौजूद हैं, तो इससे तो यह तय हो जाता है, कि आकाशीय रिकॉर्डस बन भी रहे हैं, और मिट भी रहे हैं, लेकिन फिर भी आकाशीय रिकॉर्ड सब के समान होते हैं, क्योंकि हमको यह डिफरेंट अलग-अलग इसलिए प्रतीत होते हैं, क्योंकि हम इसको बहुत छोटे समय सीमा में देखते हैं I


जब हम छोटे समय सीमा में देखेंगे, तो यह सब के अलग-अलग होते हैं, लेकिन अमर प्रकृति के आधार पर जब सब कुछ हो रहा है, अमर प्रकृति स्वयं परमात्मा है, जो कभी नष्ट नहीं होती, थिर है, वह परमात्मा ही है I जब उसके आधार पर सब हो रहा है, तो सब समान ही होगा, सबके लिए समान ही होगा, लेकिन अलग-अलग समय सीमा में, अलग-अलग टाइम फ्रेम में I आज आपके जीवन में जो घटना घट रही है, निश्चित ही सबके जीवन में घटेगी, और घट चुकी होगी, जिनके जीवन में नहीं घटी उनके में घटेगी, और जिनके घट चुकी उनके नहीं घटेगी I


इसका मतलब ये हुआ, कि हर घटनाएं सबको झेलनी हैं, हर विचार सबको आने हैं, हर भाव सबको आने हैं, हर आवेग सबको सहन करने होंगे I हर तरह का जीवन सबको जीना पड़ेगा, अच्छे से अच्छे सुख का, अच्छे से अच्छे दुःख का भी I लेकिन यह आकाशीय रिकॉर्ड सामान्य से शून्य की यात्रा में होता है I


जब शून्य से शून्य की एक जीव की यात्रा होती है, तो जितनी भी यात्रा होती है, वैसी ही सबकी यात्रा होती है, सेम यात्रा होती है, उसमें बिलकुल भी रत्ती भर भी फर्क नहीं आता, एक सूत्र ना कम, ना एक सूत्र ज़्यादा I शून्य से शून्य की यात्रा में कितनी योनियाँ आपको धारण करनी पड़ेगी, क्या-क्या घटनाएं आपके जीवन में घटेंगी I इससे संबंधित जितने भी आकाशीय रिकॉर्डस होते हैं, वह सब के सेम होते हैं I


जब परम चेतना प्रकट होती है, तो उसके शून्य आकाशीय रिकॉर्डस होते हैं, और शून्य आकाशीय रिकॉर्ड होने का मतलब ये तय होता है, कि उसके अनंत आकाशीय रिकॉर्ड हैं, क्योंकि शून्य अनंत के बराबर ही होता है, और शून्यता और अनंतता, जो तत्वों की शून्यता और तत्वों की अनंतता है, उसके पार परमात्मा है I

परमात्मा को भी अनंत कहा गया है, लेकिन परमात्मा एकरस अनंतता में है I परमात्मा थिर अनंतता में है, और जो शून्य और तत्वों की अनंतता है, वो अलग है, वह गतिमान है, वह चलायमान है, वह बंधनकारक है I


तो शून्य से उत्पत्ति होने का मतलब यही है, कि जब आपके आकाशीय रिकॉर्डस शून्य हैं, तो वो अनंत की ओर बढ़ रहे हैं, इसका मतलब ये हुआ, कि शून्य आकाशी रिकॉर्ड से आप अनंत आकाशी रिकॉर्ड को प्राप्त करके वापस शून्य आकाशी रिकॉर्ड में चले जाते हो I


तो सबके आकाशीय रिकॉर्ड इस तरह से समान होते हैं एकदम बिल्कुल परफेक्टली, कोई फर्क नहीं, सबके एकदम समान, बस जिस समय हम देखते हैं उन आकाशी रिकॉर्ड को, तो सबके जीवन में अलग-अलग घटनाएं होती प्रतीत नजर आती हैं, इसीलिए कभी भी किसी के भी जीवन को छोटे से टाइम फ्रेम में नापा और तोला नहीं जाना चाहिए, और हम सब क्योंकि हमारा जीवन छोटा होता है, जिस भी योनि में हम होते हैं, वह जीवन छोटा होता है, इसलिए सब के जीवन में अलग-अलग घटनाएं होती नजर आती हैं, और इसी से हम विचलित होकर अलग-अलग साधना पद्धति, अलग-अलग गुरु, अलग-अलग ज्ञान में चले जाते हैं I


शाश्वती ज्ञान से चूक जाते हैं, सत्य से चूक जाते हैं I यदि हम सब को यह पता हो, कि सबके जीवन में सब समान ही घटेगा, सबकी यात्रा समान ही है, किसी को कम और ज्यादा नहीं मिलने वाला, तब सब शाश्वत की ओर चल पड़ें, तब सब उस थिर की तलाश में हो जाऐँ, तब सब उस अमर के सम्मुख होने की कोशिश करें, लेकिन ये भ्रांति प्रकृति से ही दी जाती है, ताकि आप सदा विमुख रहो, और विमुखता में आप बंधन में बंधे रहो, क्योंकि सम्मुख होने पर आप मिट जाओगे, और मिटना ही आपका पूर्ण मोक्ष है, उसके बाद आप कभी इस जीवन में नहीं आओगे I


इसलिए आकाशीय रिकॉर्ड में मत उलझिए I आज जो पर्टिकुलर समय का आकाशी रिकॉर्ड है आपका, वह सबने भुगता है, और जिन्होंने नहीं भुगता वो भुगतेंगे, और जिन जिन लोगों के अच्छे आकाशी रिकॉर्ड आप देख रहे हो, वह भी आप भुगतोगे और जिनके बुरे देख रहे हो, वह भी भुगतना होगा I तो इस अच्छे और बुरे आकाशी रिकॉर्ड से निकलने का एक ही तरीका है, कि जिन पर ये आकाशीय रिकॉर्ड आरोपित होते हैं, जिन पर ये लगते हैं परम चेतना पर, आकाशीय रिकॉर्ड भी परम चेतना के रूप में ही संचित हैं I

परम चेतनाओं के समूह से ही हर परम चेतना प्रभावित है I असल में इस परम चेतनाओं का समूह ही आकाशीय रिकॉर्ड है, जो कि स्वयं परम चेतनाओं पर ही आरोपित है, मतलब आकाशी रिकॉर्ड भी परम चेतनाऐँ ही हैं, और परम चेतनाओं पर ही यह आरोपित है I


इस तरह से यह एक बहुत ही गहरा मकड़जाल बना हुआ है, और इसी मकड़जाल में हम उलझे हुए हैं I इसके ऊपर मैंने एक ऑडियो और बनाया था,.. चेतना ही चेतना को बंधन में डालती हैं, उसी से हम यह भी समझ सकते हैं कि आकाशीय रिकॉर्ड भी परम चेतनाऐँ होती हैं, और परम चेतनाओं पर ही ये आरोपित होते हैं, और ये हर तरीके से, जितने भी कॉन्बिनेशन हो सकते हैं घटनाओं के, वह सारे कॉन्बिनेशन, जितने भी संभावित घटनाएँ हो सकती हैं, जितने भी संभावित विचार, जितने भी संभावित आनंद, सुख, और दुख हो सकते हैं, वह हर परम चेतनाओं को भुगतने होते हैं प्रत्येक परम चेतनाओं को I इस तरह से ये मैट्रिक्स बनी हुई है, लेकिन ये सारे सुख दुख आनंद को भोगने की जो दिशा है, जो समय है, वह अनंत है, इसलिए जीव को लगता है छोटे समय सीमा में, कि हम सब अलग-अलग जी रहे हैं, इसका सुख ज्यादा है, मेरा सुख कम है, लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है I


आप सब समान हो, क्योंकि आपका आधार समान है, तो प्रकृति ने समानता तो देनी है, क्योंकि उसकी मजबूरी है, कि वह सबको आधार लिए हुए है, लेकिन वह अपने तरीके से समता देती है I वह इस मूवमेंट में रहते हुए भी, इस कालचक्र में रहते हुए भी, सबको समानता देती है I


यह विषय इसलिए जरूरी है, ताकि आप निश्चिंत होकर अपने सहज कर्म करते हुए, सहज प्रयास करते हुए, परमात्मा के सम्मुखता की तरफ बढ़ो और परमात्मा के सम्मुखता ही प्रयास रहित है I वही आकाशीय रिकॉर्ड्स के पार है, क्योंकि आकाशीय रिकॉर्ड आपको तब तक ही पकड़ता रहेगा, जब तक आप स्वयं परम चेतना हो, क्योंकि परम चेतना का असर परम चेतना पर ही होता है, तो जब आप परम चेतना नहीं रहोगे, परम चेतना मिट जाएगी आपकी, तो अनंत आकाशी रिकॉर्ड आपका कुछ भी नहीं कर सकतेI

यह आकाशी रिकॉर्ड से ही हैं, जो आपको गहन चिंताएं भी देते हैं, गहन आनंद भी देते हैं I आपको अलग-अलग घटनाओं से जूझना पड़ता है I हर चीज ये आकाशी रिकॉर्ड ही तय करते हैं, कि आप कितना धन कमाओगे I आप रास्ते में चल रहे हो, तो रास्ते में क्या-क्या विचार आपको आएंगे, क्या-क्या घटनाएं घटेंगी, कितने लोगों से आप मिलोगे, क्या क्या बातें कहोगे, एक-एक शब्द का, एक शब्द किस तरह से उच्चारित करोगे, और आपके शब्दों का दूसरों पर क्या असर पड़ेगा, और फिर दूसरे उससे क्या रिएक्ट करेंगे, यह सब तय है I फ़िक्स है I


आप कुछ भी पुरुषार्थ नहीं कर रहे हो, ना करने वाले हो I पुरुषार्थ कुछ है ही नहीं संसार में I पुरुषार्थ यही है, कि समग्र पुरुषार्थों से, जो आपने अहंकार में अपने ऊपर लाद लिए हैं उनसे हटना, और वह कब हटा जाता है ??? जब आप अमर प्रयास रहित से जुड़ते हो I जब आप इटर्नल एफर्टलेस से जुड़ते हो I


इस एफर्टलेसनेस को भी मन ने इस तरह से संजो दिया है, कि वो एफ़र्ट्लेस, एफ़र्ट में घुस जाता है, जैसे मंत्रों की साधना कर रहा है, स्वांसों की साधना कर रहा है, विभिन्न साधनाएँ कर रहा है, या कोई भी काम कर रहा है संसारी साधना I साधनाएँ छोड़िए, सांसारिक काम भी कर रहा है, तो उसको ऐसा फील होने लगता है, कि अब में यह काम तो कर रहा हूं, लेकिन अब उसमें एफर्ट मुझे फील नहीं हो रहा है, क्योंकि वह जो काम करने की अभ्यास था आपका, वह आपके अनकॉन्शियस माइंड में चला गया, और अब अनकॉन्शियस माइंड उस काम को कर रहा है I काम शरीर से ही हो रहा है, लेकिन उसका ड्राइवर अनकॉन्शियस माइंड हो गया I इस वजह से आप काम करते हुए भी आपको काम प्रतीत नहीं होता, और आपको लगता है, कि आप एफर्टलेस हो गए हो, लेकिन वो एफ़र्टलेस नहीं है, वह एफ़र्ट्लेस एफ़र्ट है, जो कि आपके मन का छलावा है I


हमें इटर्नल एफर्टलेस में जाना है, वो एक अलग दिशा है I वो जब आप आत्मा के गुणों से जुड़ते हो, तब इटर्नल एफ़र्ट्लेस आप में आती है, तब जाकर आप ये जो बहुत ही गहरा, बहुत ही सूक्ष्म मकड़जाल है, उससे निकल पाते हो,... और जब तक उससे नहीं निकलोगे, आप ऐसे ही अपने जीवन में उलझे रहोगे,... कब कौन सा आकाशी रिकॉर्ड आपको कौन सी व्यथा दे जाए, कौन सी परेशानी दे जाए, आप भी नहीं जानते I इससे निकलने का एकमात्र, एकमात्र तरीका है बस I

अनंत सृष्टियाँ छान मारो, जितनी खोज है उतनी खोज कर लो, लेकिन इसका मात्र एक ही तरीका है, वह है अमरता से जुड़ना, सत्य से जुड़ना, और जो अमरता और जो सत्य अन्य लोग बताते हैं, वह अमरता और सत्य नहीं है, ये खुद भी आपको आकाशीय रिकॉर्ड की वजह से ही मिले हैं I जैसे कोई गुरु का मिलना, कोई सांसारिक साधनाऐँ मिलना, आपका आना और जाना इनके पास, इन से कुछ सीखना, ज्ञान लेना, ध्यान लेना,.... यह सब आकाशी रिकॉर्ड का ही कमाल है, उसको कुछ एक्स्ट्रा मत समझ लेना I


चमत्कार तब होता है, जब आकाशी रिकॉर्ड से पार के बाद घटती है, और वो पार की बात तभी घटती है, जब जाने अनजाने में आपको परमात्मा की कृपा मिलती है I माइंड आपको अलग-अलग तरीके से उलझाने की कोशिश करता है, वो सोचता है या आपको बताता है, कि मन परेशान कर रहा है, तो आप नो माइंड में चले जाइए, लेकिन नो माइंड भी तो माइंड ही है,.. जहां आप जा रहे हो, माइंड से नो माइंड, नो माइंड से माइंड,.... ये सब मन का ही खेल है,.. और मन के खेल को मन से नहीं समझ सकते आप,... उसके लिए सत्य से जुड़ना अनिवार्य होता है, और जब तक आप मन से मन की ही साधना करते रहोगे, कभी भी नहीं जान पाओगे शक्ति को,.. और मन इतना सूक्ष्म है, इतना सूक्ष्म है, कि आप को आप के दायरे में ही फंसा कर रख देगा I


ज्ञान की अनंतता मन के पास भी है, लेकिन ज्ञान से पार परमात्मा करता है, और अज्ञान की तो हद ही बहुत है मन की I तो जब ज्ञान से पार परमात्मा करता है, तो अज्ञान से पार भी परमात्मा करता है I जितने भी गुण आप परमात्मा के सुनोगे, अगर कृपा नहीं है, तो उस मन में ही उलझ जाओगे I मन आपको शून्य तक ही उलझा कर रख देगा I परमात्मा के गुण आपको परम शून्य तक ही लाकर छोड़ देगा वो मन, और सभी ने ऐसा ही किया है I


सब ने सोचा कि परमात्मा थिर तो होगा ही, थोड़ी सी आंशिक कृपा थी, विराट भी होगा, अनंत भी होगा, सर्वव्यापी भी होगा, और अंत में ले देकर सब शून्य तक ले आते हैं, क्योंकि लगता है यह भी थिर है, सबको लगता है, यह भी सर्वव्यापी है, सबको लगता है यह भी अक़र्ता है,... लेकिन ये ना तो सर्वव्यापी है, ना थिर है, ना अक़र्ता है I अक़र्ता तो आकाशातीत है, जो आकाश से भी पार है, और सर्वव्यापी होने के लिए आपको आकाश के पार जाना जरूरी है I


तो इस तरह से जो आकाशीय रिकॉर्डस हैं, उनसे पार तभी जाओगे, जब आकाशातीत हो पाओगे, वरना आकाश में जब तक आपकी presense है, आपका अस्तित्व है…., तब तक आप आकाशीय रिकॉर्ड से पार नहीं जा पाओगे, तब तक ये अनंत परमचेतनाओं का गुच्छ, अनंत परम चेतनाओं का मकड़जाल आपकी परम चेतना को विभिन्न तरीके से अलग-अलग घटनाओं का, अलग-अलग विचारों का, अलग-अलग भावों का कारण बनाता रहेगा,... और आप इसी कारण में उलझ कर रह जाओगे I


यहां एक बेड़ी छुड़ाने में कई साल लग जाते हैं, सोचिए, इस प्रकृति का इतना गहरा मकड़जाल है, कि एक परम चेतना को अनंत परम चेतनाओं की बेड़ी से बांधा गया है, और फिर दूसरी परम चेतनाओं को अनंत परम चेतनाओं से बांधा गया है, तो आपके ऊपर कोई एक बेड़ी नहीं है, एक बंधन नहीं है, अनंत बंधन हैं, और अनंत बंधन को मन से तोड़ पाओगे ??? संभव ही नहीं, बहुत मुश्किल कहना भी छोटा शब्द है, नामुमकिन है, नामुमकिन है कि आप अनंत परम चेतनाओं के बंधन को अपने से छुड़ा पाओ, अगर और अच्छे से समझना है आपको तो, ((चेतना ही चेतना को बंधन में डालती है)) वह वाला ऑडियो सुनना I


यही आकाशीय रेकर्ड्ज़ हैं I इसको चाहे आप प्रारब्ध कहिए, चाहे संस्कार कहिए, चाहे आप का भूत, भविष्य और वर्तमान कहिए,.. सब आकाशी रिकॉर्ड की वजह से है, और आकाशी रिकॉर्डस का मूवमेंट फिक्स होता है, तय होता है, ऑटोमेटेड होता है, संचालित होता है, स्व संचालित होता है, इस वजह से उसमें भी हम कोई चेंज नहीं कर सकते, क्योंकि वो स्वयं संचालित संचालित है, और ना ही, हम हमारे ऊपर बंधनों को और उन आकाशीय रिकॉर्ड के आरोपणों को हटा सकते हैं, नहीं हटा सकते हम, तो फिर किस का सहयोग लेना होता है ?? सहयोग लेना होता है अमर का, जो इन सब आकाशी रिकॉर्ड के पार है, उसी का हमको सहयोग लेना होगा I


ये छोटी बात नहीं है, अनंत जन्मों का सवाल है, एक जन्म में तुम परेशान हो जाते हो, तो सोचिए अनंत जीवन में क्या क्या हाल होगा तुम्हारा,... तो यह सारे चेंजमेंट भी आपके जीवन में अगर आकाशीय रिकॉर्ड के आरोपण की वजह से कोई गलत घटना घटने वाली है, तो परमात्मा के सम्मुख हो तो आकाशीय रिकॉर्ड को चेंज करने की क्षमता उस अमर परमात्मा के पास है, वो अक़र्ता है, चेंज नहीं करता, लेकिन आप सम्मुख हो जाते हो, तो चेंज अपने आप होने लगते हैं, जैसे बर्फ़ तब तक आप को ठंडक नहीं देगा, जब तक आप उसके समीप या उसके ऊपर हाथ नहीं रखोगे तब तक ठंडक नहीं मिलेगी, उसकी समीपता आपको चाहिए I


तो किसी भी चीज के गुण का फायदा उठाना है तो उसके समीप जाना होगा, उसके सम्मुख होना पड़ेगा, तो परमात्मा आपको कोई कृपा नहीं देगा, और ना ही सम्मुख होने पर कृपा देता, लेकिन उसके गुण है ही कि सम्मुख होते ही कृपा मिलना शुरू हो जाएगी, वह देता नहीं है, हो जाती है शुरू I उसका गुण ही ऐसा है I


तो जब कृपा शुरू हो जाती है, तो आपकी आकाशीय रिकॉर्डस भी आपके फेवर में आना शुरू हो जाते हैं, गलत आकाशीय रिकोर्डस में चेंज आना शुरू हो जाते हैं, मैनिपुलेशंस होने शुरू हो जाते हैं, और सारे आकाशी रिकोर्डस जितने भी हैं, जो आप पर इंप्लीमेंट होने वाले होते हैं, उन सब को करेक्ट कर दिया जाता है, सहज जीवन के लिए आपको, कि आपका जीवन सहज हो जाए, इस तरह से उन सबको करेक्ट कर दिया जाता है, ऐसी क्षमता किसी भी भगवान के पास नहीं है, किसी भी लोक के भगवान को चरणवत हो जाइए आप, ऐसी समर्थता किसी भी भगवान के पास नहीं मिलेगी, किसी के भी नहीं, चाहे कितने ही उनकी शरण में चले जाएं, कितनी ही उनकी भक्ति कर लीजिए, कुछ भी कर लीजिए, कुछ नहीं होने वाला, इसलिए सत्य शरण ही परम सुरक्षा दे सकती है I


कई लोग मुझसे अपना दुख बताते हैं, जी मेरे को ऐसा दुख है, तो मैं उनको यह कहता हूं कि परमात्मा की आप साधना करते रहिए, आपका दुख दूर हो जाएगा, तो सच में साठ से सत्तर परसेंट लोग जो कहते हैं उनका दुख दूर भी हो जाता है, ऐसा नहीं है कि ये कोई मैं चमत्कार करता हूं, ये परमात्मा की ताकत है, लेकिन 30 परसेंट लोगों का नहीं होता, वो क्यों नहीं होता क्योंकि वो समर्पित नहीं हैं इसलिए नहीं होता I बाकी आपके जीवन में कितना ही गहरा दुख क्यों ना हो, वो चलता बनता है, लेकिन जब तक आप सत्य के शरण नहीं लोगे, तो सत्य कैसे सहयोगी होगा आपको ??? ऊपर ऊपर से आप शरण ले रहे हो, लालच वश ले रहे हो, कि मेरा काम बन जाए, बस काम बन जाए, फिर मैं हट जाऊंगा I


आप परमात्मा को कभी भी नहीं ठग सकते, तुम्हारे अनंत चातुर्यों को वह समझता है, तो चतुराई छोड़कर समर्पण को बढ़ाओ I चतुराई से किसी को कुछ नहीं मिला I समर्पण से बहुत कुछ मिला है, और सत्य समर्पण से तो सब कुछ मिला है I आपको अमर तृप्ति देता है सत्य समर्पण, और सबको तृप्ति की ही आवश्यकता है I हर चीज में वह तृप्ति ही ढूंढ रहा है, इसीलिए इतनी भागदौड़ कर रहा है, जाने अनजाने में कोई भी जीव क्यों ना हो, जो समझे या न समझे, अनंत योनियों में कोई भी जीव क्यों ना हो, सब हर तरीके से तृप्ति ही ढूंढ रहे होते हैं I


जब हमको भूख प्यास लगती है, कोई भी जानवर होता है, वह भोजन की तलाश में चला जाता है, वो तलाश क्यों करता है, ताकि भोजन खाकर उसको तृप्ति मिल जाए I इंसान इतना पैसा कमा रहा है, उसको लगता है कि पैसा कमा कर मुझे तृप्ति मिल जाए, इतनी भागदौड़ करता है, सब तृप्ति की चाह में लोग घंटों ध्यान लगाते हैं, सोचते हैं तृप्ति मिल जाए, लेकिन ध्यान उनका नशा बन जाता है I 1 घंटे जब वह बैठते हैं, तब तक तुमको अच्छा लगता है, फिर वापस वो के वो I फिर उनको दूसरे दिन वापस बैठना पड़ता है, फिर तीसरे दिन वापस बैठना पड़ता है, तो अखंड तृप्ति कहां मिली?? अमर तृप्ति कहां मिली ?? नहीं मिलेगी आपको, ऐसे तृप्ति नहीं मिलेगी I


जब तक सत्य से नहीं जुड़ोगे, तब तक आप को अमर तृप्ति नहीं मिलने वाली, चाहे कितने ही ध्यान लगा लो, चाहे कितनी ही साधना कर लो, कुछ नहीं होने वाला, प्रैक्टिकल करके देख लीजिए आप, और कइयों ने किया भी है, फिर भी उनको कुछ भी हाथ नहीं लगा, हाथ तभी लगेगा जब उस अमर विराट अनंत सर्वव्यापी थिर परमात्मा से जुड़ोगे, तभी आपके जीवन में अमर तृप्ति मिलेगी I


अमर तृप्ति छोटा शब्द नहीं है, कहने में छोटा लग रहा होगा, लेकिन अनंतों जीवन की तुम्हारी जो यात्रा है, जो तुम इतने भागते दौड़ते आए हो, जो आकाशीय रिकॉर्डस ने तुमको भगाया है, दौड़ाया है, तृप्ति के लिए ही भागे हो तुम I तृप्ति तो यहाँ बैठे-बिठाए आसानी से बहुत ही सरलता से मिलेगी, और वही चाहिए, वो मिल गया, तो बस कल्याण ही कल्याण, और वो नहीं मिली, तो तुम किसी की भी शरण में चले जाओ, भागते ही रहोगे, विश्राम मिलेगा ही नहीं तुम्हें, विश्राम केवल सत्य देता है, और सुरक्षा भी सत्य ही देता है I अंतः और बाहरी जगत में, आपके जीवन में शांति केवल सत्य ही देता है I


कई लोग अंतः जगत में शांति करने के लिए कोशिश तो करते हैं, ना वो अंतः जगत में शांत हो पाते, ना बाह्य जगत में I कई लोग बाह्य जगत के लिए भागते हैं, कि बाह्य जगत में शांति मिल जाए, उनकी परिस्थितियां सुधर जाए, ना बाह्य जगत में उनको शांति मिलती है, और अंदर से तो वह अशांत रहते ही हैं, तो दोनों जगह अगर आपको शांति चाहिए, तो उस सत्य सर्व व्यापी परमात्मा से आप को जुड़ना होगा I धन्यवाद I


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