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नमस्कार दोस्तों,

दोस्तों आज हम बहुत ही अच्छे टॉपिक पर बात करेंगे I आज का जो हमारा विषय है, जिसका मुझसे कई लोगों ने बहुत बार प्रश्न किया है I


“””एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट में बैठा,

एक राम है सकल पसारा, एक राम इन सबसे न्यारा I”””

इन 4 राम के बारे में कबीर जी ने बताया था I एक राम दशरथ का बेटा, इसको हर कोई जानता है, कि दशरथ का बेटा कौन था, एक राम घट घट में बैठा, वो मन है, वो हमारे सभी शरीरों में बैठा हुआ है, चाहे सजीव हो, या निर्जीव हो, ये दोनो ही चेतन हैं, यहाँ लोग निर्जीव को जड़ कह देते हैं, जड़ एक भ्रांति है, निर्जीव में भी चेतना होती है I


जैसा भी शरीर बनता है, उसका आंतरिक गुण ही मन कहलाता है I मन कोई ऐसे स्पेशल रूप से नहीं रहता उसके अंदर, उस शरीर का आंतरिक गुण ही मन होता है I तो मन सजीव और निर्जीव, देखो जीव सबके पीछे लग रहा है, स…..जीव और नि…र्जीव I निर्जीव उस वस्तु को कहा गया है, जिसमें चेतना शून्य समान होती है, चेतना अवश्य होती है, हर वस्तु में होती है चेतना, पहाड़ में चेतना है, पत्थर में चेतना है, लोहे में चेतना है, अणु में तो चेतना है ही, अणु तो एक चेतना का बहुत बड़ा भंडार है, ये सभी तो अणुओं से बने हैं, और उनसे भी सूक्ष्म तल पर जाएंगे, तो क्वॉर्क्स हैं, क्वॉर्क्स से और सूक्ष्म तल पर जाएंगे, तो स्ट्रिंग है, स्ट्रिंग से भी बहुत सारे लेवल्स हैं सूक्ष्मता के, लेकिन साइंस जितना खोज पाई है, साइंस में उतना बताया है I


तो एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट में बैठा, तो जो भी स्थूल शरीर हमको नजर आ रहे हैं, या सूक्ष्म शरीर जो भी है, जो नजर नहीं आ रहे हैं, जिसको डार्क मैटर कहा गया है साइंस के अंदर,....... कई लोगों ने मुझसे पूछा, कि डार्क मैटर भगवान है क्या,.... कितनी मतलब ऐसी ऐसी बातें की जाती हैं, डार्क मैटर किस तरह से भगवान हो गया ???


डार्क मैटर वह मैटर्स होते हैं, जो कि ब्रह्मांड या आकाश में घूम रहे हैं, जो दिखते नहीं है,... लेकिन इतने सारे हैं, इतनी गहन डेंसिटी के साथ हैं वो, बहुत सारे हैं, अनंत हैं ऐसे मैटर्स, ऐसे पदार्थ, जो कि हम अभी आंखों से देख रहे हैं, हमको दिखाई नहीं दे रहे हैं, लेकिन हमारी आंखों के सामने भी करोड़ों अरबों खरबों ऐसे पदार्थ हैं, मौजूद हैं सामने, लेकिन वो दिखाई नहीं देते I साइंस में उनको डार्क मैटर कहा गया है, क्योंकि वो अति सूक्ष्म होते हैं, वो डार्क मैटर्स भगवान नहीं है, वह भी तत्व ही है, और तत्व से परे भगवान है I


तो दोस्तों, एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट में बैठा, जितने भी तत्व हैं उन तत्वों का अंतिम गुण जो मन है, वो घट घट में बैठा हुआ है I एक राम है सकल पसारा, जितने भी ब्रह्मांड होते हैं, उन ब्रह्मांड की एक निराकार शक्ति हुआ करती है, हर लोक की एक निराकार शक्ति हुआ करती है, जो ब्रह्मपुरुषों से रिलीज हो रही है, उस शक्ति को सकल पसारा कहा गया है, वो सर्वव्यापी नहीं होती है, लेकिन जो लोक जिस लोक में होता है, जैसे कि ये लोक है, इस लोक को कबीर जी के ज्ञान के अनुसार, 21 ब्रहमंडों के एक समूह को ब्रह्मलोक कहा है, अब ये जो ब्रह्मलोक है, इस लोक में जो ब्रह्म पुरुष की निराकार शक्ति व्याप्त है, जो पसारी गयी है निराकार शक्ति, उसी निराकार शक्ति से 3 गुण, रजो गुण, सतो गुण, और तमो गुण विद्यमान हैं, उसी निराकार शक्ति की वजह से, जो माया है, जो उस ब्रह्म पुरुष की माया है, उसी माया के तीन गुण निराकार शक्ति से व्याप्त हैं इस 21 ब्रह्मांड में, वैसे ही जो ऊपर का ब्रह्म पुरुष है, उसकी निराकार शक्ति उस ब्रह्मांड, उस लोक के दायरे में है, ऐसे ही जो कबीर का लोक है, उस कबीर के लोक के ब्रह्म पुरुष की शक्ति उस लोक के दायरे में है, और उस शक्ति में ही उन लोकों के गुण समाए हुए हैं I


तो एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट में बैठा, और एक राम है सकल पसारा,........ तो ये जो निराकार रूप से राम है वह है सकल पसारा राम, और एक राम इन सबसे न्यारा, इन सबसे न्यारा राम जो कहा गया है कबीर जी ने, वो कहा है ब्रह्म पुरुष को, जैसे ये इक्कीस ब्रह्मांड हैं, 21 ब्रह्मांड में चार राम गिनाता हूं आपको, केवल इसी लोक की बात कर रहा हूँ I


पहला राम हो गया अपना दशरथ का बेटा जो विष्णु अवतार था रामकृष्ण, जो रामचंद्र जी हैं, वह दशरथ के बेटे थे वह विष्णु अवतार थे, पहला राम वो हो गया,

दूसरा राम मन, जो हर घट में बैठा हुआ है,

तीसरा राम सकल पसारा, जो निराकार रूप से व्याप्त है,

चौथा राम ब्रह्म पुरुष, जो कि इस ब्रह्मांड में अपने एक स्वयं के स्पेशल जगह पर बैठा हुआ है ब्रह्म पुरुष, ब्रह्मलोक के अंदर, इस 21 ब्रह्मांड में एक ब्रह्म लोक है, वहां पर ब्रह्मपुरुष बैठा है, वो चौथा राम है I


अब कबीर जी ने उसके बाद कहा है कि “”तीन राम को सब कोई ध्यावे और चौथा राम का मर्म न पावे”” चौथा राम जो ब्रह्म पुरुष है, उसकी भी बहुत ही कम लोग भक्ति करते हैं, बाकी तीन राम में ही उलझे पड़े हैं, और चौथा छोड़ पंचम को ध्यावे, चौथा जो ब्रह्म पुरुष है, उसके बाद पांचवा राम कबीर ने स्वयं को, स्वयं के लोक में जो ब्रह्म पुरुष बैठा हुआ है उसको बताया हुआ है I


तो पाँचवाँ राम कबीर ने कौन बताया है ?? जो इस ब्रह्म पुरुष से ऊपर का जो कबीर के लोक का ब्रह्म पुरुष है, उसको पांचवा राम बताया है I

तो अब इस पूरी साखी का अगर colclusion निकालते हैं हम,

तो मैंने यह बहुत पहले ही बता दिया है, कि अनंतों लोक हैं, अनंतों लोक में हर लोक का एक ब्रह्म पुरुष है, तो इन्होंने तो पांचवे राम की बात बताई है I

अगर कोई कबीर के लोक से ऊपर का कोई ब्रह्म पुरुष नीचे आए या उसका पैगंबर नीचे आए और कहे कि पांचवा राम छोड़ छठे को ध्यावे, वो हमरे घर आवे, , फिर सातवें लोक से ऊपर कोई आए, वो कहे कि छटा छोड़ सातवें को ध्यावे, वो हमरे घर आवे, ऐसे अनंतों राम हैं, क्योंकि अनंतों लोक हैं, तो अनंत राम होंगे I


तो सत्य बात यह है, कि इन रामों के उलझावों में जितना आओगे आप, इन साखियों के उलझावे में जितना आओगे आप,.. उतना ही उलझते चले जाओगे I


लेकिन जो इन अनंतों राम से परे राम है, वो है आत्मा I आत्मा सर्वव्यापी है, समस्त तत्व और तत्वहीनता से परे है, अज्ञेय है, उसको किसी भी शरीर या शरीर के अंदर जितने भी शरीर हैं, उससे प्राप्त नहीं किया जा सकता उसको, क्योंकि अगर आप शरीर के किसी भी अंग या किसी भी सूक्ष्म शरीर से प्राप्त करते हो, तो वो सूक्ष्म शरीर वहां जाएगा, चाहे निराकार मुक्ति के तौर पर जाएगा, तो वापस आने का भी उसका चांस है I


तो पूर्ण मुक्ति मित्रों केवल आत्मा की साधना से ही मिलेगी I बाकी कबीर जी ने चौथे राम, पांचवे राम, फिर पाँचवे से अगर कोई छठे लोक से आएगा, तो छटा राम कह देगा, कोई सातवें लोक से आएगा, तो सातवां राम कह देगा, इस तरह से ये विश्लेषण करते चले जाएंगे I राम पर राम बनाते चले जाएंगे, लेकिन मुक्ति का कोई सलूशन नहीं मिलेगा आपको I


इसीलिए मैं बहुत बार कहता रहा हूं, कि आप वाणियों के झांसे में मत फ़ंसिए, वाणियाँ फ़ंसाने के सिवाय, आपको उलझाने के सिवाय, आपके जीवन में कुछ नहीं करेंगे I


एक साखी है, आप उसी को लीजिए, कि “”””अटपटा ज्ञान कबीर का झटपट समझ ना आए और झटपट समझ आ जाए तो सारी खटपट हो जाए”””

अरे कैसे समझ में आएगा झटपट ??? पहले तो आपने 33 अरब ज्ञान दे दिया, 33 अरब वाणियाँ बोल दी, अब उन 33 अरब वाणियों में पढ़ने में ही पूरा जीवन निकल जाएगा, समझना तो बहुत दूर की बात है I

अरे अवश्य आप अटपटा ज्ञान दे देते , लेकिन थोड़ा छोटा देते, सार देते, सार तो आपने बताया नहीं, सार छिपा दिया, अब सार दिया नहीं, अटपटा होता तो भी समझने की कोशिश करते, लेकिन 33 अरब में से पहले तो सार निकालो, पहले तो उनको पढ़ने में ही पूरी जिंदगी, सौ वर्ष क्यों, 500 वर्ष लग जाएंगे 33 अरब ज्ञान को पढ़ने में और समझने में, अब 500 वर्ष की तो आपकी जिंदगी होती नहीं है, अब उसमें से सार निकालोगे पढ़कर, उसको समझने में हजार वर्ष लग जाएंगे आपको I कैसे आप मुक्त हो पाओगे ???


इसीलिए मुक्ति का पहला नियम ये होता है, कि वाणियों और ग्रंथों को पढ़ना छोड़ें और स्वयं की खोज करिए I मित्रों स्वयं की खोज शुरू में जरूर भटका सकती है, लेकिन परिपूर्ण खोज वही होती है I जब ज्ञान मिलना शुरू होता है आपको I


देखो मित्रों, मैंने अनुभव से परे एक बात कही थी, क्योंकि अनुभव से जो परे है, मन और तन का अनुभव एक अलग चीज होती है I हमारे शरीर में दो विधाएं होती हैं…….मेन, चेतना की जो सबसे मेन चीज होती है, एक होती है सुरति, एक होती है निरति, सुरति का मतलब होता है सुनना, निरति का मतलब होता है देखना, इन्हीं दो वस्तुओं से हमको अनुभव होता है, वो अनुभव शरीर का या मन का अनुभव कहलाता है I


और अभी तक आप जितनी भी साधनाएँ कर रहे थे I आपको दो ही अनुभव हुए हैं, और इन्हीं दो अनुभवों से एक एहसास बनता है हमारे शरीर में, हमारे शरीर में केमिकल्स होते हैं, जो स्थूल शरीर की अगर मैं बात करूं, तो इसमें बहुत सारे केमिकल्स होते हैं, जब हम साधना में बैठते हैं, जब ध्यान में बैठते हैं तो हमारे मस्तिष्क में एक डोपामाइन केमिकल निकलता है, उस डोपामाइन केमिकल की वजह से हमको सेटिस्फेक्शन फील होता है, आनंद फील होता है, और फिर बार-बार हम वो साधना करते हैं, वो डोपामाइन रिलीज होता है, तो हम सोचते हैं कि हम आनंदित हो रहे हैं, लेकिन जब शरीर छूटेगा, तो कहां डोपामाइन रहेगा आपके, फिर आपको आनंद कहां फील होगा, यह जो स्थूल शरीर छूट जाएगा I


मेरे मित्रों, ये बहुत गहन विज्ञान है, जब तक आप शरीर या शरीर की साधनाओं में उलझे रहोगे, तब तक आप मुक्ति का सोच भी नहीं सकते, अनंतों जन्म लग जाएंगे, लेकिन मुक्ति मिल नहीं पाएगी, और वाणियों ने इतना उलझा दिया है, वाणियों के जाल में, तो इन संतों ने अपने आप को और अपने मनुष्य में जितनी भी बातें आई सब कह दी, डरा धमका कर चले गए, ऐसी ऐसी वाणियाँ बोल दी, कि थरथर कांपने लगे जीव, ये मत करो, वो मत करो, ऐसा मत करो, वैसा मत करो I


एक वाणी में बताता हूं आपको, शायद वो इन संत ने नहीं कही है, जिनकी टैग लगाई जाती है, जिन संत की टैग लगाई जाती है, उन संत ने ये वाणी कही हुई हो ही नहीं सकती…..सुनिएगा वाणी………

“””””सौ वर्ष गुरु की पूजा, एक दिन आन उपासी

वो अपराधी आत्मा, पड़े काल की फांसी”””””

बताइए, सौ वर्ष आप गुरु की पूजा करें, और गलती से एक दिन आपने आन उपासना कर ली, तो सौ अपराधी आत्मा पड़े काल की फांसी, बताइए कितना……. कृतधग्नता है, इससे बड़ी कृतधग्नता कभी हो सकती है??? कि आपने 100 वर्ष अपने गुरु को दिए, आधीनिधि 100 वर्ष, 100 वर्ष पूरा, अपना पूरा जीवन खो दिया, उनकी साधना करने में, और गलती से कभी भटक गए, तो ऐसा नहीं कहा, कि उस भटके हुए जीव को वापस ले आएंगे, नहीं, दंडित किया जाएगा उसको, आप सोच सकते हो ये संत की वाणियाँ हो सकती हैं ???


मित्रों इतनी मिलावट की गई है वाणियों में, इतनी मिलावट की गई है, कि आपके सोच के दायरे से बाहर है I आप सोच नहीं सकते हो, हर दूसरी साखी में मिलावट है, 50% से ऊपर मिलावटें की गई हैं, जो भी संत आया, उसके बाद जो इनके गुरु, गद्दियों पर जो लोग बैठे हैं, उन्होंने पचासों, हजारों वाणियाँ मिलाई हैं, लोगों को डराने धमकाने वाली वाणियों को विशेष महत्व इन्होंने दिया, ताकि लोग इनसे चिपके रहें, जुड़े रहें और ये खुद तो अपना कल्याण कर नहीं पाए और ना ही आप लोगों का कल्याण हो पाएगा I


सत्य की पर्त इतनी आसान है, अगर आप अपने विवेक से सोचोगे, तो सत्य सामने प्रकट खुल जाएगा, इतना बड़ा गहन रहस्य नहीं है ये, कि आपको जन्म जन्मांतर तक, अनंतों वर्षों तक, अनंतो युगों तक आपको भक्ति करनी पड़े,... अरे भक्ति तो विकार है, भक्ति तो सारा मन का खेल है, भावों का खेल है, और ये भाव शरीर से ही उत्पन्न होते हैं और इन्होंने भाव को ही मुक्ति का प्रयोजन बना दिया I


भाव का, इमोशंस का एक साइंस है, साइंस खोल कर देख लेना आप I यह सारा सारा खेल केमिकल से और हमारे शरीर में जो द्रव्य निकलते हैं, उनसे सारा खेल हो रहा है,. और उन्होंने इस भाव को ही भक्ति बनाकर एक पेशा, एक बिज़नेस क्रिएट कर लिया, पैसा कमाने का एक माध्यम अर्जित कर लिया I


दोस्तो, पैसा कमाना कोई बुरी बात नहीं है, लेकिन किसी को झांसे में देकर, उलझा कर, उसके मन में गलत ज्ञान भर कर, पैसा कमाना यह पूर्ण रूप से अनुचित है, और एक एक रुपया जो इस तरह से कमाता है, उसको चुकाना पड़ेगा I


पहले तो मैं बहुत सारी वाणियों में जब, सत्य स्वरूप पढ़ता हूं, वैसे तो सत्य का कोई स्वरूप होता नहीं है I सत्य स्वरूप, ज्योति स्वरूप, ये स्वरूप स्वरूप करके ही वाणियों को उलझा दिया जाता है I वैसे हम इस पॉइंट पर आ रहे थे, कि जो अनुभव है, सुरती निरति और एहसास, अनुभव हमको इन्हीं से होता है, चाहे कितनी भी गहनतम साधना कर लीजिए, आपको ये तीन चीजें ही अनुभव करवाएंगी, सुरती, निरति और एहसास फीलिंग्स , और फीलिंग्स भी हमारे इस स्थूल शरीर का एक गुण है I



आत्मा का अनुभव सुरती, निरति, और अहसास से परे का एक अनुभव होता है, इसलिए उसको अनुभव नहीं कहा जा सकता, वो कृपा है, और वो कृपा सबसे पहला उस कृपा का गुण है, कि आपका समस्त कन्फ्यूजन्स, समस्त भरमों को मिटा देती है, ऐसी मिटाती है, जैसे कि बहुत सारा कूड़ा करकट भरा पड़ा हो किसी मैदान में, और उसमें आग लगा दी, और आग समस्त कूड़े करकट को जला देती है I


इसी तरीके से समस्त भरमों को आत्मा पूर्णरूपेण क्रॉस लगा देती है, पूर्णरूपेण मिटा देती है I इसलिए इसको अनुभव नहीं, समस्त अनुभवों पर क्रॉस लगाना कहलाता है, क्योंकि अभी तक हमको जितने भी अनुभव हुए हैं, वो असत्य या क्षणिक अनुभव हुए हैं, जो कि कुछ समय तक ही होते हैं वो अनुभव I जैसे इस संसार के नियमों का अनुभव हुआ, इस संसार के नियम, जो इस ब्रह्मांड के नियम हैं, वो शाश्वत नहीं हैं, तो अगर अनुभव हो भी जाता है आपको, कोई धुन सुनाई भी देती है, या कुछ स्पेशल थोड़ा सा ज्ञान मिल भी जाता है, तो वो ज्ञान मुक्ति के लायक नहीं है, वह मुक्ति नहीं करवाएगा आपकी I


मुक्ति केवल और केवल समस्त शरीरों को और समस्त शरीरों में व्याप्त जो मन है, उसको गिराना ही मुक्ति है I जाकर कहीं मिलना मुक्ति नहीं है I सायुज्य मुक्ति, सामीप्य मुक्ति, ये मुक्तियाँ नहीं हैं, ये छलावा है I मुक्ति का मतलब केवल जो ये सारे शरीर हैं, वो सारे शरीर और सारे मन बंधन हैं, केवल अगर आप यह सोचो कि स्थूल शरीर को, ये तीन गुणों को हम जीत लेंगे, रजोगुण, सतोगुण, तमोगुण को जीत लेंगे तो हम मुक्त हो जाएंगे, अरे नहीं मित्रों, 3 गुण के ऊपर 16 गुण हैं, 16 पर 64 गुण हैं, 64 पर हजार गुण हैं, तीन गुण जब आप छोड़ोगे, तो आपमें 16 गुण प्रकट होंगे, क्षमा, दया, प्रेम, इस तरह के 16 गुण प्रकट होंगे आप में, 16 गुण छोड़ोगे तो 64 गुण प्रकट हो जाएंगे, 64 गुण छोड़ोगे हजार गुण प्रकट हो जाएँगे I


कब तक छोड़ते रहोगे इन गुणों को ??? आत्म साधना से समस्त अनंत गुण धराशाई हो जाते हैं और आप पूर्ण मुक्त हो जाते हो , और यही पूर्ण मुक्ति है I ये मुक्ति इतनी कठिन नहीं है, असल में ये बड़ी सिंपल मुक्ति है,... जैसे कि आप हजारों जेल के अंदर डाले गए हो, अब वहां से मुक्त होने का क्या तरीका है ????

जैसे आप एक जेल में हो, फिर उसके अंदर जेल है, फिर उसके अंदर जेल है, ऐसे हज़ारों जेलों के अंदर आपको डाला गया है I

तो आप जहां हो वही मर जाओ तो मुक्ति हो गयी ना I तो पहले शून्य से जो परम चेतन्य हमारे शरीर में बैठा हुआ है, अनंतों शरीरों का जो परम सूक्ष्म शरीर है, वो परम चेतन्य ही मर जाएगा, तो ये शरीर तो सारे ही गिर जाएंगे अपने आप I


तो मित्रों हमारा मूल लक्ष्य, वो जो परम चैतन्य है, उसी को मार दो, और वो सुरत अतीत साधना, निरत अतीत साधना, भावातीत साधना, ध्यानातीत साधना से ही संभव है, और वो संभवता केवल अलख की, पूर्ण अलख की साधना से ही मिल सकती है, अन्यथा कोई और तरीका नहीं है, जिससे आपको मुक्ति मिले I


मैं आपको हर वीडियो में एक निशब्द का सेन देता हूं, केवल सुनने मात्र से आप में निशब्द प्रकट हो रहा है, ये सत करके मानिए आप, कि मैं जो बोल रहा हूं, उन बातों से धीरे-धीरे धीरे-धीरे आप निशब्द के करीब पहुंच रहे हो, इसीलिए आपमें पात्रता आती है I मेरा दुश्मन भी सुनेगा, अगर सारे वीडियो सुनेगा, तो धीरे धीरे धीरे धीरे उसके अंदर निशब्दता प्रकट होने लगी, और धीरे-धीरे धीरे-धीरे वो परम चैतन्य पर वार करेगी वो, वो निशब्द परम चैतन्य पर वार करता है, ये बहुत ही सूक्ष्म से भी अति सूक्ष्म होता है I


इसको सूक्ष्म और स्थूल कहना गलत है, क्योंकि ये सूक्ष्मता की सारी हदों को तोड़ देता है, सारी स्थूलता की हदों को तोड़ देता है निशब्द I आपको पूर्णरूपेण आवागमन से रोक देता है निशब्द I

तो आज हमारा जो टॉपिक था, वो यही टोपिक था, कि आप इन साखियों में मत उलझिए, कि एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट में बैठा, एक राम है सकल पसारा, एक राम है सबसे न्यारा, और फिर कहते हैं, कि चौथा राम छोड़ पंचम को ध्यावे, कहे कबीर वो हमरे आवे इसी में उलझते चले जाओगे, आपको मूल मिलेगा नहीं, और मूल केवल आत्मा है I आत्मा के सिवाय मूल हो ही नहीं सकता, असंभव है, और संत की भी, उनकी भी बलिहारी, जिन्होंने इस मूल को पकड़ा, और उनकी भी बलिहारी जो इस मूल को जानने की कोशिश कर रहे हैं, मैं अपनी वाणी को यहीं विराम देता हूं I धन्यवाद I


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दोस्तों आज हम चेतना के बारे में बात करेंगे,.. कि चेतना क्या होती है ?? आप किसी भी ग्रंथ को पढ़िए,.. किसी भी शास्त्र को पढ़िए या किसी भी विद्वान पुरुष के पास जाइए,... वह क्या कहता है, कि परमात्मा या भगवान परम चैतन्य है I वह चेतन पुरुष है I और आप अष्टावक्र गीता पढ़िए या रिभु गीता पढ़िए,.. उसमें आकाश को भगवान माना है,.. उन्होंने आकाश को परम चेतन्य माना है,.. कि परम चेतनता यही है I

लेकिन दोस्तों आज हम बात करते हैं,.. कि चेतनता क्या होती है ???और इसका आत्मा या परमात्मा,..चूँकि आत्मा और परमात्मा एक ही है ,..तो इससे क्या संबंध है चेतना का ??

सबसे पहले, तुम्हें आत्मा के बारे में बताना चाहता हूं,.. कि आत्मा की वजह से ही यह सारी सृष्टि मौजूद है I जिन भी तत्वों में,.. जिन भी वस्तुओं में,.. हम जो भी गुण देखते हैं,.. वह सब आत्मा की वजह से ही है,.. चाहे वह रंग हो, रूप हो, उसका शेप और साइज हो, ये सारे गुण आत्मा की वजह से ही मौजूद है I अगर आत्मा ना हो,.. तो,.. इनमें से कोई भी गुण उसमें मौजूद नहीं मिलेगा I वह अच्छे में भी मौजूद है आत्मा,.. बुरे में भी मौजूद है I

आत्मा किसी वस्तु का भेद नहीं करती,.. कि मैं इसमें मौजूद रहूं या इसमें नहीं रहूं I आत्मा सजीव में भी है और निर्जीव में भी है I अगर कोई कहे कि नहीं नहीं आत्मा तो सजीव में होती है निर्जीव में नहीं होती,. तो यह भी गलत हैI आत्मा दोनों में ही होती है I आत्मा हर वस्तु में होती है, कण-कण में होती है I

अब हम बात करते हैं कि चेतन्यता क्या होती है ?? अगर हम साइंस की दृष्टि से देखें,..तो चेतनता का मतलब होता है,..सोचने समझने महसूस करने की शक्ति को चेतन बोलते हैं I यह स्वयं और अपने आसपास के वातावरण के तत्वों का बोध होने, उन्हें समझने तथा उनकी बातों का मूल्यांकन करने की शक्ति का नाम ही चेतना है I आप दुबारा सुनिए, समझिए इस बात को,.......स्वयं के और अपने आसपास के वातावरण के तत्वों का बोध होने, उन्हें समझने तथा उनकी बातों का मूल्यांकन करने की शक्ति का नाम चेतना है I अब यह जितनी ज्यादा बढ़ती चली जाती है,. उतनी ही हम चैतन्य होते चलते चले जाते हैं,... लेकिन क्या चेतना गुण आत्मा का गुण है ? परमात्मा का गुण है ये चेतना ? क्योंकि चेतना के नाम से, परम चेतन्यता के नाम से बहुत ज्यादा लोग भ्रमित हैं I और यहां तक कि ग्रंथ तक भ्रमित हैं I सारे ग्रंथों में उस परमात्मा को परम चैतन्य पुरुष कहा गया है I

लेकिन असली ज्ञान को हम समझते हैं,. कि चेतनता या चैतन्यता,..आत्मा का गुण है या नहीं I क्योंकि मैंने अभी आपको बताया कि समस्त जगत में जितने भी वस्तुयें हैं, सजीव, निर्जीव जो भी हैं, उन सब में जो भी गुण व्याप्त हैं, वो आत्मा की वजह से हैं, लेकिन आत्मा इन सबसे निर्लेप है, इन सबसे अलग होते हुए भी उनके गुणों को कायम रखे हुए है आत्मा I यह आत्मा की एडवांटेज हैं, कि वह सभी वस्तुओं में स्वयं के गुण आत्मा की वजह से कायम हैं I वो क्रियावान है आत्मा की वजह से, उनके रंग आत्मा की वजह से,.. उनके जो भी गुण हैं ,..जो भी आप समझ सकते हो, जितने भी गुण, वो आत्मा की वजह से हैं, लेकिन वो आत्मा के गुण नहीं हैं, जैसे कि कोई पत्थर काला है ,..तो इसका मतलब ये नहीं है,.. कि वो काला कलर आत्मा का गुण है, जैसे किसी गंदी जगह से गंध आ रही है,..तो ऐसा नहीं है, की वो गंध,..आत्मा का गुण हो गया,.. या फूल से खुशबू आ रही है, तो वह खुशबू आत्मा का गुण हो गया,.. नहीं I तो ख़ुशबू, सुगंध या कलर आत्मा की वजह से है,.. लेकिन आत्मा के गुण नहीं हैं I

फिर दोहराना चाहता हूं,. कि जितने भी जगत् में,. जितनी भी चीजें हैं,.. उन सब के गुण आत्मा की वजह से है,.. लेकिन वह गुण आत्मा के नहीं हैं I आत्मा इन सब को अपना आधार देते हुए,.. इन सब से निर्लेप है, इन सबसे अलग है I ये छोटा सा,..ये बहुत ही छोटा सा सूक्ष्म अंतर है, जो हमको समझना है,..फिर हमारे सारे कंसेप्ट क्लियर हो जाएंगे I

इसीलिए जो चेतनता है,..वो असल में मन का गुण है,..और उसको सपोर्ट किए हुए है आत्मा I अब जैसे जैसे हम सूक्ष्म तत्वों की तरफ चलते चले जाते हैं ,..जैसे कि आप सूक्ष्म शरीर में जाते हो,.. तो आपकी चेतना ज्यादा अच्छी होती है I कारण शरीर में और अच्छी होती है I केवल्य शरीर में तो बहुत ही,.. जिसको आप कह सकते हो,.. कि परम चैतन्य हो जाते हो आप I आपके सोचने समझने की शक्ति बहुत विराट हो जाती है I उसका कैनवास बढ़ जाता है,.. क्योंकि महर्षियों ने उस परमात्मा को परम चैतन्य इसलिए कहा है, क्योंकि वो अपने इस स्थूल तत्व से साधना करके, उस सूक्ष्म तत्व की ओर चले जाते हैं, अपनी सुरति को,.. कहने का तात्पर्य है कि अपनी सुरति को इस स्थूल शरीर से सुरति को उस सूक्ष्म शरीर में ले जाते हैं I

तो वहां जब उनकी सुरति सूक्ष्म शरीर में होती है,.. तो वह अपने आप को,. इस स्थूल शरीर से ज्यादा चेतनावान समझती है,, तो वो सोचते हैं,.. कि यही चेतना भगवान है,...लेकिन ऐसा नहीं है ऐसा बिल्क़ुल भी नहीं है I जब तक तत्व है, तब तक चेतना है I जैसे ही तत्व खत्म हुआ, चेतना खत्म हो जाएगी I आत्मा, चेतन और अवचेतन या अचेतन इन तीनों अवस्था से परे है I आप साइंस में जाओगे,. तो साइंस में माइंड को तीन विभागों में बांटा गया है I 1) कॉन्शियस माइंड 2) सबकॉन्शियस माइंड और 3) अनकॉन्शियस माइंड I सबकॉन्शियस माइंड, कॉन्शियस माइंड और अनकॉन्शियस माइंड के बीच का सेतु होता है,. जिसको अगर कंप्यूटर की लैंग्वेज में कहा जाए तो रैम (RAM) कहते है उसे रैंडम एक्सेस मेमोरी कहते हैं (cache), जो की हार्ड डिस्क और डिस्प्ले या जो भी इसके बीच की होती है,.. जो अपने को,. जो भी कंप्यूटर पर चीज दिखाई देती है और जो हार्ड डिस्क में होता है, हार्ड डिस्क को UNCONSCIOUS मानो, और जो हमको दिखाई दे रहा है,. जो कि तुरंत घटित हो रहा है कंप्यूटर पर ,..उसको CONSCIOUS मानो, और बीच में जो RAM है, उसको SUBCONSCIOUS मानो I

तो CONSCIOUS का मतलब होता चेतना I तो कंप्यूटर में जब चेतना है, जैसे कंप्यूटर है, कम्प्यूटर की अपनी खुद की चेतना है I आजकल तो कंप्यूटर के ऐसे ऐसे DIVICES बन गए हैं, की बहुत अच्छे अच्छे SENSORS लगे हुए हैं, इतने अच्छे SENSORS लगे हुए हैं, जितनी कि अपनी ही बॉडी SENSTISATION नहीं रखती , इतनी संवेदना नहीं रखती ,जितने कि वो यंत्र संवेदना रखते हैं I तो इसका क्या मतलब हुआ ?? क्या वह आत्मा का गुण है ?? नहीं I लेकिन आत्मा की वजह से वह संवेदना है,.. लेकिन आत्मा निर्लेप है I कहने का मतलब है, कि जैसे आप किसी अच्छे मॉल में जाइए और नल के नीचे हाथ रखिए, अपने आप नल चल पड़ेगा I

क्योंकि ऐसे SENSETISATIONS उसमें लगे हुए हैं I ऐसे हमारी बॉडी में भी, पाँच तत्व के शरीर में भी SENSTISATION हैं, महसूस करने की क्षमता है,. भाव हैं, सोचने समझने की क्षमता है,.. वो हमारी चेतना है I

और जैसे-जैसे हम अच्छे क्वालिटेटिव तत्वों को प्राप्त होते चले जाते हैं ,..वैसे वैसे हमारी चेतना भी बढ़ती चली जाती है I जितने सूक्ष्म तत्वों की तरफ़ हम बढ़ते चले जाते हैं, उतनी ही अच्छी हमारी चेतना होती चली जाती है I तो इसीलिए ग्रंथों में उसको परम चैतन्य कहा गया है,.. क्योंकि आत्मा की साधना जल्दी से किसी को उपलब्ध नहीं हुई I तो उन्होंने क्या किया,.. कि अपनी सुरति को कहां ले गए वो ???? सूक्ष्म तत्वों की तरफ ले गए , सूक्ष्म शरीरों की तरफ ले गए I जब वो सूक्ष्म शरीर में जाते हैं, जैसे कि स्थूल शरीर से सूक्ष्म में गए तो अपने आपको ज्यादा चेतनावान महसूस किया,.. फिर कारण शरीर में गए तो और ज्यादा चेतनावान महसूस किया, महाकरण में गए तो और ज़्यादा चेतनावान, और जब केवल्य में गए तो उन्होंने कह दिया कि यही परम चैतन्य है I लेकिन केवल्य से ऊपर नूरी शरीर में जाने वाले कहते हैं कि ये चेतना तो कुछ भी नहीं है, यहाँ और ज़्यादा चेतना है I

तो वो तत्वों का गुण है, न कि आत्मा का I जैसे ही तत्व खंड हुआ, चेतना भी ख़त्म हो गई I जैसे कि कोई पत्थर है, उसमें अगर हीट है, अगर तत्व को तोड़ दो, तो हीट नहीं रहेगी I जैसे कोई गंदी नाली है, वहाँसे गंदी बदबू आ रही है तो उस नाली को साफ कर दो, तो वो बदबू नहीं रहेगी I

तो जब तक तत्व है, तब तक चेतना है I चेतना आत्मा का गुण नहीं है I यह तत्व का गुण है, तत्व की क्वालिटी का गुण है, लेकिन हां,.. आत्मा उसको सपोर्ट कर रही है I आत्मा के आधार के बगैर,.. किसी भी वस्तु,. किसी भी तत्व में कोई गुण नहीं हो सकता,...वो गुण रहित हो जाएंगे I उनका कोई तादाम्य, कोई आधार रहेगा ही नहीं I उनका अस्तित्व ही नहीं रहेगा,.. यदि आत्मा नहीं है तो I

जब आप आत्म ज्ञान को प्राप्त करोगे,.. तब आपको यह पता चलेगा,. कि कोई अस्तित्व नहीं रहेगा I मन की हद, मन की लास्ट हद,.. सूक्ष्मता तक जाने की, मन की लास्ट हद होती है शून्य I उसके आगे मन नहीं जा सकता I उसके बाद आत्मा की हद शुरू होती है,... इसीलिए तो अष्टावक्र गीता और रिभु गीता में इन्होंने शून्य को या आकाश को ही परम चैतन्य मान लिया, क्योंकि इनको सूझा नहीं, कि इन्होंने जितना मन से जाना, उतना जान लिया I गीताएँ लिख दीं I बड़े बड़े महर्षि बड़े-बड़े व्याख्यान देते देते रहते हैं, और यही लगता है कि यही सब कुछ है I लेकिन इससे भी सूक्ष्म है वह आत्मा I परम सूक्ष्म I उससे बड़ा सूक्ष्म हो ही नहीं सकता I इसलिए यहां पर अगर किसी लोगों को यह कंफ्यूजन है कि चेतना गुण, आत्मा का है, तो वो ग़लत है I

अगर फिर भी आपके मन में कोई प्रश्न है, चेतना से सम्बंधित, तो आप हमसे प्रश्न पूछ सकते हैं, क्योंकि हमने ये जाना है I हमारे सामने ये दृश्यमान है, सब कुछ I आत्मा को जानने के बाद कुछ छिपा नहीं रहता I अगर आपके मन में कोई प्रश्न है, तो आप पूछ सकते हैं I धन्यवाद I


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हमको अभी केवल चेतना के जगत के बारे में ही बताया गया है I अचेतन के बारे में सही तरीके से हमको अभी तक किसी ने नहीं बताया और जब हम अचेतन को जान लेंगे तो उसके बाद फिर परमात्मा की तरफ हमारी धुर आसानी से लग जाती है I मन परमात्मा को नहीं जानता, लेकिन जब मन, चेतन और अचेतन को जान लेता है,.. तो उसको समझ आ जाता है कि इसके परे परमात्म सत्ता है I

जो हम समझते हैं,..ये जड़ और चेतन I ये दोनों ही चेतन हैं I जड़ हम उन चीजों को समझते हैं जो अपने अनुसार खुद हिल डुल नहीं सकती, उनको हम जड़ वस्तुएं समझते हैं,.. जैसे लकड़ी, कटी हुई लकड़ी या फिर पत्थर, लोहा, मिट्टी इन सबको हम जड़ समझते हैं ,..और चेतन हम उनको समझते हैं, जो अपने खुद चल सकता है ,..जैसे जानवर, इंसान या अन्य जीव, उनको हम चेतन जीव समझते हैं,.. लेकिन ऐसा नहीं है I जड़ भी चेतन तत्वों से ही बना है,.. और जो जीव जो चलता फिरता नजर आता है वह भी चेतन तत्वों से ही बने हैं I

अब प्रश्न उठता है अचेतन क्या है ???

अचेतन है परम शून्य,.. जिसको कहते हैं,.. नथिंगनेस,.. कुछ नहीं ही अचेतन है I जो परमशून्य का आकाश है, जो कुछ नहीं का जो आकाश है,.. वह अचेतन है,.. और उसी अचेतन से चेतन प्रकट होता है I उसी अचेतन से चेतन तत्व प्रकट होते हैं ,..तत्व प्रकट होते हैं I अचेतन जो आकाश होता है,.. जो परम शून्य का आकाश होता है, उससे पहला तत्व परम चैतन्य प्रकट होता है,.. और जब बहुत सारी परम चैतन्य प्रकट होते हैं ,..अनंत परम चैतन्य प्रकट होते हैं, तो सारे परम चैतन्य मिलकर एक आकाश बनाते हैं I पहला आकाश जो परम चैतन्य आकाश होता है,.. उसको परम चैतन्य या शून्य भी कह सकते हैं, क्योंकि जितने भी आकाश होते हैं,.. उनको चाहे आकाश कहो,.. चाहे शून्य कहो I

इस तरह से हम को भेद समझना है,.. कि चेतन क्या होता है,..? और अचेतन क्या होता है ? जड़ और चेतन्य की जो परिभाषा है, वो स्थूल जगत की परिभाषा है, वो सही तरीक़े से और नासमझी के कारण प्रकट हुई परिभाषा है I

जड़ और चेतन जैसी व्यवस्था की परिभाषा इसलिए दी गयी है, ताकि आप थोड़ी उच्च चेतनाओं की तरफ़ जा सकें, बस मात्र, और कोई विषय नहीं है, क्योंकि हम जैसे ही सूक्ष्मतम तत्वों के लोकों में जाते हैं, तो वहाँ पर हमको जो जड़ वस्तुएँ हैं, वो भी चैतन्य नज़र आती है, क्योंकि असल में वो सूक्ष्म तत्व हैं,... लेकिन यहाँ पर स्थूलता इतनी बढ़ी हुई है, कि हमको, जो चेतन वस्तुएँ हैं, वो जड़ ही नज़र आती हैं, क्योंकि वो चल फिर नहीं सकतीं, लेकिन वो बनी हैं चेतन तत्वों से ही I

वह सच्चा परमात्मा तो चेतन अचेतन का आधार है I वो है असल परमात्मा I वो है समर्थ I उस समर्थ की भक्ति, उस अमृत की साधना,. विरलो में विरले में बिरला करता है I यह चीज अनंत जन्मों में समझ में आती है I अनंत जन्मों की यात्रा तक तो हम अस्तित्व के ही उलझनों में उलझे रहते हैं I हम नकारते रहते हैं परमात्मा की सत्ता को I परमात्मा की कृपा को हम नकार देते हैं, ठुकरा देते हैं I

आपके सामने पूरी क्लैरिटी के साथ, पूर्ण रूप से, बिल्क़ुल पारदर्शिता के साथ ये बात रखी जा रही है I अब समय है,.. और इन बातों को वही समझ पाएगा,.. जिस पर प्रभु कृपा है,..असीम प्रभु कृपा है I इसीलिए जो व्यक्ति इसको समझ पाता है,.. वह फिर इसको कभी ,..इस मार्ग को भूल कर भी नहीं छोड़ सकता I सर्वोत्तम मार्ग है ये I पूर्ण मुक्ति का मार्ग I इसके सिवाय अनंत ब्रह्मांडों में कोई मार्ग नहीं है I


हर ब्रह्मांड में इस मार्ग को (शाश्वत मार्ग, परमात्मा का मार्ग) बताने वाला या इस मार्ग को जानने वाला हर ब्रह्मांड में मौजूद होता है I हर ब्रह्मांड में कोई ना कोई होता है,.. लेकिन यही ज्ञान है ,अनंत ब्रह्मांडों में मुक्ति का I बाकी अनंत ब्रह्मांडों में अलग-अलग ज्ञान हैं, वह सब बंधन के ज्ञान हैं, सब आपको बंधन में डालने वाले हैं I पंथों के ज्ञान,.. धर्मों के ज्ञान,.. जितने भी पंथ चल रहे हैं,... वह सब बने हैं,.. और वो मिट जाएंगे I उनका जन्म हुआ है, तो मिट भी जाएंगे I

परमात्मा निरपंथ होता है I परमात्मा समस्त पंथ, अपंथ के पार होता है I उसका अमर पंथ होता है I हमेशा उसका पंथ चलता है, कोई समय विशेष नहीं होता, कि इस समय आएगा, इतने लोगों को पार करेगा, और वो पंथ मिट जाएगा I ऐसा कभी नहीं होता I

परमात्मा का पंथ, हमेशा से था, है, और रहेगा I और उस पंथ का नियामक कोई नहीं होता I मसीहा आएगा, ज्ञान बताकर जाएगा, नहीं, ऐसा कभी नहीं होता I परमात्मा ने सबको कृपा के रूप में ,..यह ज्ञान बताया हुआ ही है,.. बस हम विमुख हैं I एक बार उस विमुखता से हट जाऐँ, सारे ज्ञान अज्ञान से मुंह तोड़ने,.. तो फिर बचेगा परमात्मा का ही ज्ञान I क्योंकि परमात्मा तो पूर्ण रूप से ज्ञान अज्ञान के परे है I जब तक आप पंथों में उलझोगे, वाणियों में उलझोगे, ज्ञान में उलझोगे, ग्रंथों में उलझोगे,.... क्योंकि ग्रंथों में इतनी बारीकी से बातें कही गई हैं,.. कि आप पकड़ ही नहीं पाओगे,.. और किस तरीके से वह आपको परमात्मा का ज्ञान बोलकर,.. कि यह परमात्मा का ज्ञान है,.. काल के ज्ञान में ही डाल देंगे,..I और बहुत कॉन्फिडेंस से कहेंगे आपको,.. चिल्ला चिल्ला कर कहेंगे,.. संगठन बनाकर कहेंगे,.. बड़ी-बड़ी छवियां,.. बड़े-बड़े अलग अलग तरीके से आकर्षित करके कहेंगे I

परमात्मा का ज्ञान तो आपको सरलतम तरीके से आपके घर पर ही उपलब्ध हो जाएगा I I कहीं आने जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी I विभिन्न मनों के चंगुल में फंसने की जरूरत नहीं पड़ेगी I किसी को ठेस पहुंचाने की जरूरत नहीं पड़ेगी I किसी की निंदा करने की आपको कतई जरूरत नहीं पड़ेगी,.. कि उसका ज्ञान छोटा,.. हमारा ज्ञान बड़ा,.. ऐसा नहीं है I . खुद समझो,..बस बहुत है I

ये इतनी अमूल्य धरोहर है ,..इतना बड़ा धन है,... कि आप इस धन को ,..जो आप किसी दूसरे को समझाओगे,...वो तुरंत स्वीकार नहीं कर पाएगा I

यहां पर भ्रम बहुत हैं I उलझनें बहुत हैं, और उन उलझनों, उन भ्रमों में डालने वाले भी बहुत हैं I एक से एक एजेंट बैठे हुए हैं ,..और आप में उनके ज्ञान को इस तरह से भर देंगे,.. कि कभी आप उनके ज्ञान को छोड़ने की कोशिश भी करोगे ,..तो आप में गिल्ट डाल देंगे I आप में एक ग्लानि भाव डाल देंगे I उस ग्लानि भाव से आप उभर नहीं पाओगे I ये लोग,.. जितने भी लोग हैं,.. पूर्ण रूप से काल व्यवस्था से प्रेरित लोग हैं I चेतन,.. अचेतन व्यवस्थाओं से प्रेरित लोग हैं I ये परमात्म सत्ता को दूर-दूर तक नहीं जानते,.. जितने भी लोग आए हैं संसार में,.. बड़े-बड़े पंथ जिन्होंने खड़े किए हैं, लाखों-करोड़ों शिष्य जिन्होंने बनाए हैं,.. सब के सब इस परमात्म व्यवस्था से विमुख हैं I

इसलिए आप सब लोगों को चेतन अचेतन को सही तरीके से समझना होगा I चेतन और अचेतन आपने समझ लिया,.. तो समझिए,.. कि आपने परमात्मा को समझ लिया,.. और परमात्मा को समझ लिया,.. तो फिर कोई भी आपको डिगा नहीं सकता,.. क्योंकि चेतन अचेतन नहीं समझोगे,... तो कई लोग आप को साकार निराकार या साकार निराकार से पार ,..इन तीनों में उलझाते रहेंगे और आप जान नहीं पाओगे,..ढंग से क्लेरिफाई नहीं कर पाओगे ,..अपने मन को संतुष्टि नहीं कर पाओगे,.. कि मैं सही हूं या गलत हूं I

इसलिए चेतन और अचेतन को आपने सही तरह से समझ लोगे, जान लोगे, तो परमात्म सत्ता को जान लोगे I धन्यवाद I


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