
नमस्कार दोस्तों,
दोस्तों आज हम बहुत ही अच्छे टॉपिक पर बात करेंगे I आज का जो हमारा विषय है, जिसका मुझसे कई लोगों ने बहुत बार प्रश्न किया है I
“””एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट में बैठा,
एक राम है सकल पसारा, एक राम इन सबसे न्यारा I”””
इन 4 राम के बारे में कबीर जी ने बताया था I एक राम दशरथ का बेटा, इसको हर कोई जानता है, कि दशरथ का बेटा कौन था, एक राम घट घट में बैठा, वो मन है, वो हमारे सभी शरीरों में बैठा हुआ है, चाहे सजीव हो, या निर्जीव हो, ये दोनो ही चेतन हैं, यहाँ लोग निर्जीव को जड़ कह देते हैं, जड़ एक भ्रांति है, निर्जीव में भी चेतना होती है I
जैसा भी शरीर बनता है, उसका आंतरिक गुण ही मन कहलाता है I मन कोई ऐसे स्पेशल रूप से नहीं रहता उसके अंदर, उस शरीर का आंतरिक गुण ही मन होता है I तो मन सजीव और निर्जीव, देखो जीव सबके पीछे लग रहा है, स…..जीव और नि…र्जीव I निर्जीव उस वस्तु को कहा गया है, जिसमें चेतना शून्य समान होती है, चेतना अवश्य होती है, हर वस्तु में होती है चेतना, पहाड़ में चेतना है, पत्थर में चेतना है, लोहे में चेतना है, अणु में तो चेतना है ही, अणु तो एक चेतना का बहुत बड़ा भंडार है, ये सभी तो अणुओं से बने हैं, और उनसे भी सूक्ष्म तल पर जाएंगे, तो क्वॉर्क्स हैं, क्वॉर्क्स से और सूक्ष्म तल पर जाएंगे, तो स्ट्रिंग है, स्ट्रिंग से भी बहुत सारे लेवल्स हैं सूक्ष्मता के, लेकिन साइंस जितना खोज पाई है, साइंस में उतना बताया है I
तो एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट में बैठा, तो जो भी स्थूल शरीर हमको नजर आ रहे हैं, या सूक्ष्म शरीर जो भी है, जो नजर नहीं आ रहे हैं, जिसको डार्क मैटर कहा गया है साइंस के अंदर,....... कई लोगों ने मुझसे पूछा, कि डार्क मैटर भगवान है क्या,.... कितनी मतलब ऐसी ऐसी बातें की जाती हैं, डार्क मैटर किस तरह से भगवान हो गया ???
डार्क मैटर वह मैटर्स होते हैं, जो कि ब्रह्मांड या आकाश में घूम रहे हैं, जो दिखते नहीं है,... लेकिन इतने सारे हैं, इतनी गहन डेंसिटी के साथ हैं वो, बहुत सारे हैं, अनंत हैं ऐसे मैटर्स, ऐसे पदार्थ, जो कि हम अभी आंखों से देख रहे हैं, हमको दिखाई नहीं दे रहे हैं, लेकिन हमारी आंखों के सामने भी करोड़ों अरबों खरबों ऐसे पदार्थ हैं, मौजूद हैं सामने, लेकिन वो दिखाई नहीं देते I साइंस में उनको डार्क मैटर कहा गया है, क्योंकि वो अति सूक्ष्म होते हैं, वो डार्क मैटर्स भगवान नहीं है, वह भी तत्व ही है, और तत्व से परे भगवान है I
तो दोस्तों, एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट में बैठा, जितने भी तत्व हैं उन तत्वों का अंतिम गुण जो मन है, वो घट घट में बैठा हुआ है I एक राम है सकल पसारा, जितने भी ब्रह्मांड होते हैं, उन ब्रह्मांड की एक निराकार शक्ति हुआ करती है, हर लोक की एक निराकार शक्ति हुआ करती है, जो ब्रह्मपुरुषों से रिलीज हो रही है, उस शक्ति को सकल पसारा कहा गया है, वो सर्वव्यापी नहीं होती है, लेकिन जो लोक जिस लोक में होता है, जैसे कि ये लोक है, इस लोक को कबीर जी के ज्ञान के अनुसार, 21 ब्रहमंडों के एक समूह को ब्रह्मलोक कहा है, अब ये जो ब्रह्मलोक है, इस लोक में जो ब्रह्म पुरुष की निराकार शक्ति व्याप्त है, जो पसारी गयी है निराकार शक्ति, उसी निराकार शक्ति से 3 गुण, रजो गुण, सतो गुण, और तमो गुण विद्यमान हैं, उसी निराकार शक्ति की वजह से, जो माया है, जो उस ब्रह्म पुरुष की माया है, उसी माया के तीन गुण निराकार शक्ति से व्याप्त हैं इस 21 ब्रह्मांड में, वैसे ही जो ऊपर का ब्रह्म पुरुष है, उसकी निराकार शक्ति उस ब्रह्मांड, उस लोक के दायरे में है, ऐसे ही जो कबीर का लोक है, उस कबीर के लोक के ब्रह्म पुरुष की शक्ति उस लोक के दायरे में है, और उस शक्ति में ही उन लोकों के गुण समाए हुए हैं I
तो एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट में बैठा, और एक राम है सकल पसारा,........ तो ये जो निराकार रूप से राम है वह है सकल पसारा राम, और एक राम इन सबसे न्यारा, इन सबसे न्यारा राम जो कहा गया है कबीर जी ने, वो कहा है ब्रह्म पुरुष को, जैसे ये इक्कीस ब्रह्मांड हैं, 21 ब्रह्मांड में चार राम गिनाता हूं आपको, केवल इसी लोक की बात कर रहा हूँ I
पहला राम हो गया अपना दशरथ का बेटा जो विष्णु अवतार था रामकृष्ण, जो रामचंद्र जी हैं, वह दशरथ के बेटे थे वह विष्णु अवतार थे, पहला राम वो हो गया,
दूसरा राम मन, जो हर घट में बैठा हुआ है,
तीसरा राम सकल पसारा, जो निराकार रूप से व्याप्त है,
चौथा राम ब्रह्म पुरुष, जो कि इस ब्रह्मांड में अपने एक स्वयं के स्पेशल जगह पर बैठा हुआ है ब्रह्म पुरुष, ब्रह्मलोक के अंदर, इस 21 ब्रह्मांड में एक ब्रह्म लोक है, वहां पर ब्रह्मपुरुष बैठा है, वो चौथा राम है I
अब कबीर जी ने उसके बाद कहा है कि “”तीन राम को सब कोई ध्यावे और चौथा राम का मर्म न पावे”” चौथा राम जो ब्रह्म पुरुष है, उसकी भी बहुत ही कम लोग भक्ति करते हैं, बाकी तीन राम में ही उलझे पड़े हैं, और चौथा छोड़ पंचम को ध्यावे, चौथा जो ब्रह्म पुरुष है, उसके बाद पांचवा राम कबीर ने स्वयं को, स्वयं के लोक में जो ब्रह्म पुरुष बैठा हुआ है उसको बताया हुआ है I
तो पाँचवाँ राम कबीर ने कौन बताया है ?? जो इस ब्रह्म पुरुष से ऊपर का जो कबीर के लोक का ब्रह्म पुरुष है, उसको पांचवा राम बताया है I
तो अब इस पूरी साखी का अगर colclusion निकालते हैं हम,
तो मैंने यह बहुत पहले ही बता दिया है, कि अनंतों लोक हैं, अनंतों लोक में हर लोक का एक ब्रह्म पुरुष है, तो इन्होंने तो पांचवे राम की बात बताई है I
अगर कोई कबीर के लोक से ऊपर का कोई ब्रह्म पुरुष नीचे आए या उसका पैगंबर नीचे आए और कहे कि पांचवा राम छोड़ छठे को ध्यावे, वो हमरे घर आवे, , फिर सातवें लोक से ऊपर कोई आए, वो कहे कि छटा छोड़ सातवें को ध्यावे, वो हमरे घर आवे, ऐसे अनंतों राम हैं, क्योंकि अनंतों लोक हैं, तो अनंत राम होंगे I
तो सत्य बात यह है, कि इन रामों के उलझावों में जितना आओगे आप, इन साखियों के उलझावे में जितना आओगे आप,.. उतना ही उलझते चले जाओगे I
लेकिन जो इन अनंतों राम से परे राम है, वो है आत्मा I आत्मा सर्वव्यापी है, समस्त तत्व और तत्वहीनता से परे है, अज्ञेय है, उसको किसी भी शरीर या शरीर के अंदर जितने भी शरीर हैं, उससे प्राप्त नहीं किया जा सकता उसको, क्योंकि अगर आप शरीर के किसी भी अंग या किसी भी सूक्ष्म शरीर से प्राप्त करते हो, तो वो सूक्ष्म शरीर वहां जाएगा, चाहे निराकार मुक्ति के तौर पर जाएगा, तो वापस आने का भी उसका चांस है I
तो पूर्ण मुक्ति मित्रों केवल आत्मा की साधना से ही मिलेगी I बाकी कबीर जी ने चौथे राम, पांचवे राम, फिर पाँचवे से अगर कोई छठे लोक से आएगा, तो छटा राम कह देगा, कोई सातवें लोक से आएगा, तो सातवां राम कह देगा, इस तरह से ये विश्लेषण करते चले जाएंगे I राम पर राम बनाते चले जाएंगे, लेकिन मुक्ति का कोई सलूशन नहीं मिलेगा आपको I
इसीलिए मैं बहुत बार कहता रहा हूं, कि आप वाणियों के झांसे में मत फ़ंसिए, वाणियाँ फ़ंसाने के सिवाय, आपको उलझाने के सिवाय, आपके जीवन में कुछ नहीं करेंगे I
एक साखी है, आप उसी को लीजिए, कि “”””अटपटा ज्ञान कबीर का झटपट समझ ना आए और झटपट समझ आ जाए तो सारी खटपट हो जाए”””
अरे कैसे समझ में आएगा झटपट ??? पहले तो आपने 33 अरब ज्ञान दे दिया, 33 अरब वाणियाँ बोल दी, अब उन 33 अरब वाणियों में पढ़ने में ही पूरा जीवन निकल जाएगा, समझना तो बहुत दूर की बात है I
अरे अवश्य आप अटपटा ज्ञान दे देते , लेकिन थोड़ा छोटा देते, सार देते, सार तो आपने बताया नहीं, सार छिपा दिया, अब सार दिया नहीं, अटपटा होता तो भी समझने की कोशिश करते, लेकिन 33 अरब में से पहले तो सार निकालो, पहले तो उनको पढ़ने में ही पूरी जिंदगी, सौ वर्ष क्यों, 500 वर्ष लग जाएंगे 33 अरब ज्ञान को पढ़ने में और समझने में, अब 500 वर्ष की तो आपकी जिंदगी होती नहीं है, अब उसमें से सार निकालोगे पढ़कर, उसको समझने में हजार वर्ष लग जाएंगे आपको I कैसे आप मुक्त हो पाओगे ???
इसीलिए मुक्ति का पहला नियम ये होता है, कि वाणियों और ग्रंथों को पढ़ना छोड़ें और स्वयं की खोज करिए I मित्रों स्वयं की खोज शुरू में जरूर भटका सकती है, लेकिन परिपूर्ण खोज वही होती है I जब ज्ञान मिलना शुरू होता है आपको I
देखो मित्रों, मैंने अनुभव से परे एक बात कही थी, क्योंकि अनुभव से जो परे है, मन और तन का अनुभव एक अलग चीज होती है I हमारे शरीर में दो विधाएं होती हैं…….मेन, चेतना की जो सबसे मेन चीज होती है, एक होती है सुरति, एक होती है निरति, सुरति का मतलब होता है सुनना, निरति का मतलब होता है देखना, इन्हीं दो वस्तुओं से हमको अनुभव होता है, वो अनुभव शरीर का या मन का अनुभव कहलाता है I
और अभी तक आप जितनी भी साधनाएँ कर रहे थे I आपको दो ही अनुभव हुए हैं, और इन्हीं दो अनुभवों से एक एहसास बनता है हमारे शरीर में, हमारे शरीर में केमिकल्स होते हैं, जो स्थूल शरीर की अगर मैं बात करूं, तो इसमें बहुत सारे केमिकल्स होते हैं, जब हम साधना में बैठते हैं, जब ध्यान में बैठते हैं तो हमारे मस्तिष्क में एक डोपामाइन केमिकल निकलता है, उस डोपामाइन केमिकल की वजह से हमको सेटिस्फेक्शन फील होता है, आनंद फील होता है, और फिर बार-बार हम वो साधना करते हैं, वो डोपामाइन रिलीज होता है, तो हम सोचते हैं कि हम आनंदित हो रहे हैं, लेकिन जब शरीर छूटेगा, तो कहां डोपामाइन रहेगा आपके, फिर आपको आनंद कहां फील होगा, यह जो स्थूल शरीर छूट जाएगा I
मेरे मित्रों, ये बहुत गहन विज्ञान है, जब तक आप शरीर या शरीर की साधनाओं में उलझे रहोगे, तब तक आप मुक्ति का सोच भी नहीं सकते, अनंतों जन्म लग जाएंगे, लेकिन मुक्ति मिल नहीं पाएगी, और वाणियों ने इतना उलझा दिया है, वाणियों के जाल में, तो इन संतों ने अपने आप को और अपने मनुष्य में जितनी भी बातें आई सब कह दी, डरा धमका कर चले गए, ऐसी ऐसी वाणियाँ बोल दी, कि थरथर कांपने लगे जीव, ये मत करो, वो मत करो, ऐसा मत करो, वैसा मत करो I
एक वाणी में बताता हूं आपको, शायद वो इन संत ने नहीं कही है, जिनकी टैग लगाई जाती है, जिन संत की टैग लगाई जाती है, उन संत ने ये वाणी कही हुई हो ही नहीं सकती…..सुनिएगा वाणी………
“””””सौ वर्ष गुरु की पूजा, एक दिन आन उपासी
वो अपराधी आत्मा, पड़े काल की फांसी”””””
बताइए, सौ वर्ष आप गुरु की पूजा करें, और गलती से एक दिन आपने आन उपासना कर ली, तो सौ अपराधी आत्मा पड़े काल की फांसी, बताइए कितना……. कृतधग्नता है, इससे बड़ी कृतधग्नता कभी हो सकती है??? कि आपने 100 वर्ष अपने गुरु को दिए, आधीनिधि 100 वर्ष, 100 वर्ष पूरा, अपना पूरा जीवन खो दिया, उनकी साधना करने में, और गलती से कभी भटक गए, तो ऐसा नहीं कहा, कि उस भटके हुए जीव को वापस ले आएंगे, नहीं, दंडित किया जाएगा उसको, आप सोच सकते हो ये संत की वाणियाँ हो सकती हैं ???
मित्रों इतनी मिलावट की गई है वाणियों में, इतनी मिलावट की गई है, कि आपके सोच के दायरे से बाहर है I आप सोच नहीं सकते हो, हर दूसरी साखी में मिलावट है, 50% से ऊपर मिलावटें की गई हैं, जो भी संत आया, उसके बाद जो इनके गुरु, गद्दियों पर जो लोग बैठे हैं, उन्होंने पचासों, हजारों वाणियाँ मिलाई हैं, लोगों को डराने धमकाने वाली वाणियों को विशेष महत्व इन्होंने दिया, ताकि लोग इनसे चिपके रहें, जुड़े रहें और ये खुद तो अपना कल्याण कर नहीं पाए और ना ही आप लोगों का कल्याण हो पाएगा I
सत्य की पर्त इतनी आसान है, अगर आप अपने विवेक से सोचोगे, तो सत्य सामने प्रकट खुल जाएगा, इतना बड़ा गहन रहस्य नहीं है ये, कि आपको जन्म जन्मांतर तक, अनंतों वर्षों तक, अनंतो युगों तक आपको भक्ति करनी पड़े,... अरे भक्ति तो विकार है, भक्ति तो सारा मन का खेल है, भावों का खेल है, और ये भाव शरीर से ही उत्पन्न होते हैं और इन्होंने भाव को ही मुक्ति का प्रयोजन बना दिया I
भाव का, इमोशंस का एक साइंस है, साइंस खोल कर देख लेना आप I यह सारा सारा खेल केमिकल से और हमारे शरीर में जो द्रव्य निकलते हैं, उनसे सारा खेल हो रहा है,. और उन्होंने इस भाव को ही भक्ति बनाकर एक पेशा, एक बिज़नेस क्रिएट कर लिया, पैसा कमाने का एक माध्यम अर्जित कर लिया I
दोस्तो, पैसा कमाना कोई बुरी बात नहीं है, लेकिन किसी को झांसे में देकर, उलझा कर, उसके मन में गलत ज्ञान भर कर, पैसा कमाना यह पूर्ण रूप से अनुचित है, और एक एक रुपया जो इस तरह से कमाता है, उसको चुकाना पड़ेगा I
पहले तो मैं बहुत सारी वाणियों में जब, सत्य स्वरूप पढ़ता हूं, वैसे तो सत्य का कोई स्वरूप होता नहीं है I सत्य स्वरूप, ज्योति स्वरूप, ये स्वरूप स्वरूप करके ही वाणियों को उलझा दिया जाता है I वैसे हम इस पॉइंट पर आ रहे थे, कि जो अनुभव है, सुरती निरति और एहसास, अनुभव हमको इन्हीं से होता है, चाहे कितनी भी गहनतम साधना कर लीजिए, आपको ये तीन चीजें ही अनुभव करवाएंगी, सुरती, निरति और एहसास फीलिंग्स , और फीलिंग्स भी हमारे इस स्थूल शरीर का एक गुण है I
आत्मा का अनुभव सुरती, निरति, और अहसास से परे का एक अनुभव होता है, इसलिए उसको अनुभव नहीं कहा जा सकता, वो कृपा है, और वो कृपा सबसे पहला उस कृपा का गुण है, कि आपका समस्त कन्फ्यूजन्स, समस्त भरमों को मिटा देती है, ऐसी मिटाती है, जैसे कि बहुत सारा कूड़ा करकट भरा पड़ा हो किसी मैदान में, और उसमें आग लगा दी, और आग समस्त कूड़े करकट को जला देती है I
इसी तरीके से समस्त भरमों को आत्मा पूर्णरूपेण क्रॉस लगा देती है, पूर्णरूपेण मिटा देती है I इसलिए इसको अनुभव नहीं, समस्त अनुभवों पर क्रॉस लगाना कहलाता है, क्योंकि अभी तक हमको जितने भी अनुभव हुए हैं, वो असत्य या क्षणिक अनुभव हुए हैं, जो कि कुछ समय तक ही होते हैं वो अनुभव I जैसे इस संसार के नियमों का अनुभव हुआ, इस संसार के नियम, जो इस ब्रह्मांड के नियम हैं, वो शाश्वत नहीं हैं, तो अगर अनुभव हो भी जाता है आपको, कोई धुन सुनाई भी देती है, या कुछ स्पेशल थोड़ा सा ज्ञान मिल भी जाता है, तो वो ज्ञान मुक्ति के लायक नहीं है, वह मुक्ति नहीं करवाएगा आपकी I
मुक्ति केवल और केवल समस्त शरीरों को और समस्त शरीरों में व्याप्त जो मन है, उसको गिराना ही मुक्ति है I जाकर कहीं मिलना मुक्ति नहीं है I सायुज्य मुक्ति, सामीप्य मुक्ति, ये मुक्तियाँ नहीं हैं, ये छलावा है I मुक्ति का मतलब केवल जो ये सारे शरीर हैं, वो सारे शरीर और सारे मन बंधन हैं, केवल अगर आप यह सोचो कि स्थूल शरीर को, ये तीन गुणों को हम जीत लेंगे, रजोगुण, सतोगुण, तमोगुण को जीत लेंगे तो हम मुक्त हो जाएंगे, अरे नहीं मित्रों, 3 गुण के ऊपर 16 गुण हैं, 16 पर 64 गुण हैं, 64 पर हजार गुण हैं, तीन गुण जब आप छोड़ोगे, तो आपमें 16 गुण प्रकट होंगे, क्षमा, दया, प्रेम, इस तरह के 16 गुण प्रकट होंगे आप में, 16 गुण छोड़ोगे तो 64 गुण प्रकट हो जाएंगे, 64 गुण छोड़ोगे हजार गुण प्रकट हो जाएँगे I
कब तक छोड़ते रहोगे इन गुणों को ??? आत्म साधना से समस्त अनंत गुण धराशाई हो जाते हैं और आप पूर्ण मुक्त हो जाते हो , और यही पूर्ण मुक्ति है I ये मुक्ति इतनी कठिन नहीं है, असल में ये बड़ी सिंपल मुक्ति है,... जैसे कि आप हजारों जेल के अंदर डाले गए हो, अब वहां से मुक्त होने का क्या तरीका है ????
जैसे आप एक जेल में हो, फिर उसके अंदर जेल है, फिर उसके अंदर जेल है, ऐसे हज़ारों जेलों के अंदर आपको डाला गया है I
तो आप जहां हो वही मर जाओ तो मुक्ति हो गयी ना I तो पहले शून्य से जो परम चेतन्य हमारे शरीर में बैठा हुआ है, अनंतों शरीरों का जो परम सूक्ष्म शरीर है, वो परम चेतन्य ही मर जाएगा, तो ये शरीर तो सारे ही गिर जाएंगे अपने आप I
तो मित्रों हमारा मूल लक्ष्य, वो जो परम चैतन्य है, उसी को मार दो, और वो सुरत अतीत साधना, निरत अतीत साधना, भावातीत साधना, ध्यानातीत साधना से ही संभव है, और वो संभवता केवल अलख की, पूर्ण अलख की साधना से ही मिल सकती है, अन्यथा कोई और तरीका नहीं है, जिससे आपको मुक्ति मिले I
मैं आपको हर वीडियो में एक निशब्द का सेन देता हूं, केवल सुनने मात्र से आप में निशब्द प्रकट हो रहा है, ये सत करके मानिए आप, कि मैं जो बोल रहा हूं, उन बातों से धीरे-धीरे धीरे-धीरे आप निशब्द के करीब पहुंच रहे हो, इसीलिए आपमें पात्रता आती है I मेरा दुश्मन भी सुनेगा, अगर सारे वीडियो सुनेगा, तो धीरे धीरे धीरे धीरे उसके अंदर निशब्दता प्रकट होने लगी, और धीरे-धीरे धीरे-धीरे वो परम चैतन्य पर वार करेगी वो, वो निशब्द परम चैतन्य पर वार करता है, ये बहुत ही सूक्ष्म से भी अति सूक्ष्म होता है I
इसको सूक्ष्म और स्थूल कहना गलत है, क्योंकि ये सूक्ष्मता की सारी हदों को तोड़ देता है, सारी स्थूलता की हदों को तोड़ देता है निशब्द I आपको पूर्णरूपेण आवागमन से रोक देता है निशब्द I
तो आज हमारा जो टॉपिक था, वो यही टोपिक था, कि आप इन साखियों में मत उलझिए, कि एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट में बैठा, एक राम है सकल पसारा, एक राम है सबसे न्यारा, और फिर कहते हैं, कि चौथा राम छोड़ पंचम को ध्यावे, कहे कबीर वो हमरे आवे इसी में उलझते चले जाओगे, आपको मूल मिलेगा नहीं, और मूल केवल आत्मा है I आत्मा के सिवाय मूल हो ही नहीं सकता, असंभव है, और संत की भी, उनकी भी बलिहारी, जिन्होंने इस मूल को पकड़ा, और उनकी भी बलिहारी जो इस मूल को जानने की कोशिश कर रहे हैं, मैं अपनी वाणी को यहीं विराम देता हूं I धन्यवाद I