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इसे जानना ज़रूरी है , तभी आप परमात्मा को जान पाओगे मिमत्रों चेतन और अचेतन को समझना बहुत जरूरी है ( इं मि%&श में इसको कॉन्शसनेस और अनकॉन्शसनेस भी कहा जाता है ) अगर हम उसको नहीं समझेंगे तो परमात्मा सत्ता को पूर्ण0 रूप से नहीं समझ पाएं गे I परमात्म सत्ता क्या है उसको समझ ही हम तब पाएं गे ,.. जब चेतन और अचेतन को भ&ीभांतित जान &ेंगे I हमको अभी के व& चेतना के जगत के बारे में ही बताया गया है I अचेतन के बारे में सही तरीके से हमको अभी तक मिकसी ने नहीं बताया और जब हम अचेतन को जान &ेंगे तो उसके बाद मि:र परमात्मा की तर: हमारी धुर आसानी से &ग जाती है I मन परमात्मा को नहीं जानता , &ेमिकन जब मन , चेतन और अचेतन को जान &ेता है ,.. तो उसको समझ आ जाता है मिक इस के परे परमात्म सत्ता है I जो हम समझते हैं ,.. ये जड़ और चेतन I ये दोनों ही चेतन हैं I जड़ हम उन चीजों को समझते हैं जो अपने अनुसार खुद मिह& डु & नहीं सकती , उनको हम जड़ वस्तुएं समझते हैं ,.. जैसे &कड़ी , कटी हुई &कड़ी या मि:र पत्थर , &ोहा , मिमट्टी इन सबको हम जड़ समझते हैं ,.. और चेतन हम उनको समझते हैं , जो अपने खुद च& सकता है ,.. जैसे जानवर , इं सान या अन्य जीव , उनको हम चेतन जीव समझते हैं , और उनको जड़ समझते हैं ,.. &ेमिकन ऐसा नहीं है I जड़ भी चेतन तत्वों से ही बना है ,.. और जो जीव जो च&ता मि:रता नजर नहीं आता है वह भी चेतन तत्वों से ही बने हैं I अस& में तत्व चेतना ही है I तो इस जगत में जो भी ततित्वक व्यवस्था हम देख रहे हैं ,.. वो सब चेतना से ही बनी हुई व्यवस्था है I वह अचेतन से नहीं है ,.. मत&ब तत्वों से ही बनी व्यवस्थाएं हैं I हमारा शरीर भी तत्वों से बना है ,.. पत्थर मिमट्टी &ोहा भी तत्वों से बना है ,.. बस उसकी व्यवस्था उस चेतना के अर्णुओं से बनने की जो व्यवस्था है , वो ऐसी व्यवस्था है मिक वह खुद च& मि:र नहीं पाते उनका सिसस्टम्स सिजसको कहा जाता है , तं त्र उनका ऐसा है मिक वह च& मि:र नहीं सकते और हमारा तं त्र इस तरह से है ,. मिक हम सोच भी सकते हैं , समझ भी सकते हैं ,... और च& मि:र भी सकते हैं I Page of ​

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आपे में आप सामना. ये बात अज्ञानता वश कही गयी है। जब जीव खुद को भी अमर जाने और अमर परमात्मा में समा जाए तो लोग आपे में आप सामना कहते है। सत्य तो सत्य में अमरता से समाया हुआ ही है। कभी सत्य, सत्य से अलग नहीं होता या कहे वह अमर अविनाशी अपने से अलग जाकर कुछ अन्य नहीं बनता। अगर ऐसा हो तो उसे अखंड निरंतर कौन कहेगा। जब सत्य, सत्य से अलग नहीं होता तो सत्य में बाहर से आकर कोई समा भी नहीं सकता। मतलब सत्य से बाहर कुछ नहीं निकलता। नाही सत्य में जाकर कोई समाता। तो आपे में आप सामना एक अज्ञानपूर्ण बात है। ये असत्य सत्ता में ही हो सकता है। जैसे पानी से एक बूंद निकले और वापस जाकर पानी मे समा जाए। फिर वापस निकल जाए, फिर समा जाए, तो ये असत्य सत्ता की घटनाएं है। सत्य सत्ता में कभी कोई परिवर्तन नहीं होता। वह सदैव एकरस, निरंतर, अखण्ड, निरधुन, अप्राप्य, सर्वव्याप्त, अमर थीर, अमर शांत सत्ता है। जो भी उसके सम्मुख होता है, वो उसमें जाकर कभी नहीं समाता बल्कि खुद पूरा मिट जाता है। यही पूर्ण मोक्ष है।


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परमात्मा तो प्रकट, अप्रकट से परे है। प्रकट होना और अप्रकट होना तो तत्त्व सत्ता का काम है। परिवर्तन सत्ता का काम है। वो तो सदैव अमर थीर, शाश्वत गुणों के साथ एकरस है । वो किसी घट में जाकर प्रकट नहीं होता लेकिन वो सर्व घट, अघट में मौजूद है, रमा हुआ है , जैसे ही कोई जीव उसके सम्मुख होता है तो उसका जीवत्व नष्ट होने लगता है और वो पूर्ण रूपेण सम्मुखता को प्राप्त होता है। फिर वो परमात्मा संचालित हो जाता है , इसका ये बिलकुल मतलब नहीं कि परमात्मा उससे कोई काम करवाता है, बल्कि परमात्मा संचालित होने का मतलब ये होता है कि वो परमात्मा के गुणों के अनुरूप कार्यान्वित होता है, ये परमात्मा का शाश्वत विधान है । तो परमात्मा संचालित होने का ये भी मतलब नहीं है कि आप में प्रकट हो गया, इसका मतलब ये है कि वो तो था ही, बस आपके सम्मुख होने पर उससे आपको शाश्वत नियमो के अनुरूप सहयोग मिलने लगा। जो भी उसकी सुध में आएगा उसके साथ ऐसा होगा। और जो उसके अमृत को चखेगा, वो पूर्ण तृप्ति को प्राप्त हो जायेगा। परमात्मा ऐसा कभी नहीं है कि किसी घट में प्रकट हो जाये और किसी में नहीं, वो सब में बराबर समान रूप से है, बस आपको पहल करके उसके अमृत को पीना है। यही संसार की धारा से उलट धारा में जाना कहलाता है। वो निश्चित ही सबका कल्याणकारी है। बस हमको ही जीवो की आराधना साधना छोड़कर सत्य की शरण लेनी होगी। जीव निश्चित ही आपको जीव व्यवस्था में उलझाने के लिए उससे सम्बंधित परिवर्तन सत्ता का ही ज्ञान देगा। उस सर्वव्यापी एकत्व की शरण ही पूर्ण और समर्थ है। बाकी सभी शरण में आपको कलह, चिंता, द्वेष मिलेगा।

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