सत्य की महिमा के अनन्त फल हैं। लेकिन हमने सत्य की महिमा न करके गुरुओं की और जीवो की महिमा की इसीलिए हम सदैव अमर फल की तरफ बढ़ ही नहीं पाए। आश्चर्य तो इस बात का है कि कोई भी ग्रंथ उठाकर देखो, गुरु और काल महिमा के सिवाय कुछ नहीं हैं। इन लोगों ने आपको सत्य से बहुत दूर कर दिया। ये बिलकुल ऐसा है जैसे किसी पक्षी की स्तुति में हजारों पक्षी इकठ्ठे हो जाये और स्तुति कर रहे है। जिसकी स्तुति की जा रही है वो उन पक्षियों को ये बता रहा है कि मैं तुमको खुली उड़ान के लिए आकाश उपलब्ध करवाऊंगा। लेकिन उन स्तुतिकर्ता पक्षियों को ये पता नहीं हैं कि आकाश तो हमको पहले से ही उपलब्ध हैं, फिर भी अज्ञानतावश उस गुरु रूपी पक्षी की स्तुति में ही जीवन निकाल देते है। अगर ग्रंथो और गुरुओं के पास ही सत्य की महिमा होती, तो आज सर्व जगत अमर आनंद में आल्हादित होता। हमें सहज सरल सुलभ सत्य से कोसों दूर कर दिया, इन अज्ञान और असत्य की स्तुति करवा करवा कर। स्तुति और महिमा योग्य केवल सत्य है। सत्य की महिमा ही सत्य से सम्मुखता है, वो सदैव एक पल के अनन्तवे हिस्से में हमारा सहयोगी हैं। वो ही हैं जो हमें किसी भी विकट समस्या से संभाल लेगा। वही हमारा सच्चा सखा है, जो जीते जी मुक्ति और अंत में मोक्षदायक हैं। वही सच्ची अमर सहजता उपलब्ध करवाता हैं। वही श्वासों और धुनों के पार अमर रस का पान करवाता है। बाकी सारे रस मृत और झूठे हैं क्षणिक हैं, थोड़ी देर के लिए आपको सुखद अहसास तो करवा देंगे लेकिन बाद में वापस विलुप्त हो जायेंगे। सत्य शरण ही केवल शरण है बाकी अनंत सृष्टियों में आपकी शरण को कोई संभाल नहीं पायेगा। सब हाथ खड़े कर देते हैं एक समय बाद। चाहे अनंत सृष्टियों का पति ही क्यों न हो।