Jainism (Hindi)
जैन धर्म

भगवान ऋषभदेव
संस्थापक – ऋषभदेव
जैन धर्म में कुल 24 तीर्थंकर हैं
ऋषभदेव पहले तीर्थंकर थे जिन्हें आदिनाथ के नाम से जाना जाता है
इनका प्रतीक चिन्ह बैल है
23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे
पार्श्वनाथ काशीराज अश्वसेन के पुत्र थे
पार्श्वनाथ को तपस्या के 84 में दिन सम्मेद पर्वत पर ज्ञान प्राप्त हुआ
इनका प्रतीक चिन्ह सांप है
24वें व अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी थे जिन्हें जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक माना जाता है
इन का प्रतीक चिन्ह शेर है
महावीर स्वामी

बचपन का नाम वर्धमान
जन्म 540 BC में वैशाली के कुंडग्राम में हुआ
पिता – सिद्धार्थ जो ज्ञात्रक वंश के राजा थे माता त्रिशला (लिच्छवी राजकुमारी)
पत्नी – यशोदा
पुत्री – प्रियदर्शनी
दामाद – जमाली
बड़े भाई नंदीवर्धन से आज्ञा लेकर 30 वर्ष की आयु में घर का त्याग किया
12 वर्ष की कठोर तपस्या के बाद वर्धमान को अंग महाजनपद में ऋजुपालिका नदी के तट पर ज्ञान(कैवल्य) प्राप्त हुआ
कैवल्य का अर्थ सर्वोच्च ज्ञान होता है
कैवल्य प्राप्त होने के कारण वर्धमान कैवलीन कहलाए
असीमित पराक्रम दिखाने के कारण महावीर कहलाए
अपनी समस्त इंद्रियों को जीतने के कारण जिन तथा बंधन रहित होने के कारण निग्रंथ कहलाए
महावीर ने अपना पहला उपदेश राजगृह में दिया
महावीर का पहला शिष्य जमाली तथा प्रथम शिष्य चंदना थी
महावीर ने अपने विचारों का प्रचार-प्रसार करने के लिए “गण (समूह)” बनाए थे
महावीर की मृत्यु के समय केवल 1 गढ़ का अध्यक्ष सुधर्मण बचा था
महावीर की मृत्यु पावापुरी में 72 वर्ष की अवस्था में 468 BC में हुई थी
जैन धर्म के सिद्धांत
त्रिरत्न के सिद्धांत का प्रतिपादन किया
सम्यक दर्शन

सम्यक ज्ञान
सम्यक आचरण
सल्लेखना (उपवास द्वारा शरीर का त्याग) पद्धति का विकास
इसी पद्धति के माध्यम से मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य ने कर्नाटक के श्रवणबेलगोला नामक स्थान पर जाकर भद्रबाहु (जैन साधु) की देखरेख में अपने प्राणों का त्याग किया
दिगंबर (नग्न रहते हैं) संप्रदाय संलेखना को संलेखन तथा श्वेतांबर (श्वेत कपड़े पहनने वाले) संप्रदाय सल्लेखना को संथारा कहते हैं
स्यादवाद जिसे अनेकांतवाद मार्ग तथा सप्तभंगी मार्ग के सिद्धांत का प्रतिपादन किया
महावीर ने पांच महाव्रत में केवल ब्रह्मचर्य को जोड़ा बाकी चारों महाव्रत पार्श्वनाथ के थे
सत्य
अहिंसा
अस्तेय (चोरी ना करना)
अपरिग्रह (अधिक संचय ना करना)
ब्रह्मचर्य
अंग और आगम जैन धर्म के महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं
जैन संगतियाँ
प्रथम जैन संगति
298 ई0 पू0
स्थान पाटलिपुत्र
शासक चंद्रगुप्त मौर्य
अध्यक्षता स्थूलभद्र
इस संगति में जैन धर्म दो भागों में विभाजित हो गया
श्वेतांबर (श्वेत वस्त्र धारण करने वाले) अध्यक्ष स्थूलभद्र
दिगंबर (नग्न रहने वाले) अध्यक्ष भद्रबाहु
दूसरी जैन संगति
513/511 BC
स्थान वल्लभी गुजरात
शासक मैत्रीय वंश के शासक ध्रुवसेन
अध्यक्ष देवर्धिक्षमाश्रमण

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